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Burhan kadiyani .

Tragedy

2  

Burhan kadiyani .

Tragedy

आखरी सांस

आखरी सांस

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उस रात, उस दिन को दस साल हो गये!

आँखों से आसुओं की गंगा बहे दस साल हो गये!

खेल रहे थे वो अपने पोते के साथ!

कुछ दूर से आ रही थी पटाखों की आवाज़

बोला पोता, "मुझे भी ख़रीदने हैं बम, 

कुछ छोटे कुछ बड़े बम!

सुन के लफ्ज़ बम, बुज़ुर्ग का फूल गया दम

फिर आँखों के सामने आ गया ज़िंदगी भर का गम

फिर से याद आ गई वो रात, 

फिर से याद आ गया वो दिन!

बम फूटा था, बच्चे का पिता शहीद हुआ था

कहीं दिल, कही अंतड़ियां, कहीं कलेजा फैला हुआ था

उस बूढ़े बाप ने एक एक टुकड़ा जोड़

अपने लाडले को चादर में समेटा था,

वो रात आज भी अंधेरा कर जाती है

बूढी आँखों को अंधा कर जाती हैं।

रात बीती आया दिन, 

ख़ुश हो के भाग के घर आने वाला 

तिरंगे में सोता हुआ आया उस दिन,

जिसको अपने हाथों से खिलाया था

उसको मुखाग्नि दे के खुद ने ही जलाया था,

जिस आँगन में बचपन बिताया था

उसी आँगन में जवानी को जलाया था,

पोता फिर बोला, " दादाजी मुझे लेने हैं बम!"

कैसे बोलते वो दस साल के गम ने 

निकाल दिया उनके शरीर से दम!









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