आखिरी ख़त
आखिरी ख़त
गुजरा जमाना आज लौट कर सामने आया,
उनका लिखा आखिरी खत जब हाथ आया।
जाने कैसी कशिश थी उस खत में क्या आकर्षण था,
बार-बार पढ़ कर भी फिर पढ़ने को जी करता था।
पन्ने पन्ने पर तुम्हारी मुस्कराहट भरी छवि उभर जाती थी।
एक एक शब्द में तुम्हारी शरारत नज़र आती थी।
तुम्हारे शब्द मेरे नयनों में झांकते हुए सरगोशी कर रहे थे।
पढ़ते-पढ़ते यूं लगा मानो सामने खड़े तुम कह रहे थे,
आ जाओ अब भी कर रहा हूँ बस तेरा ही इंतजार,
ज़माने में मैंने किया है सिर्फ और सिर्फ तुमसे ही प्यार।

