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Shalini Dikshit

Romance

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Shalini Dikshit

Romance

आखिर क्यों?

आखिर क्यों?

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तुम्हारा कहना कि

प्रेम है मुझसे

क्यों छलावा सा

लगता है मुझे ?


फिर बार-बार उसको

सच मान लेने का

क्यों मन करता है मेरा ?


इस झूठ को

सच मान लेने पर

क्यों मन मजबूर

हो जाता है मेरा ?


जानती हूँ यह प्रेम 

सिर्फ एक वहम है

फिर इस वहम के

अचानक टूट जाने से

क्यो दुखी होता है मन मेरा ?


जो कभी

था ही नहीं

उसका टूटना कैसा..

क्यों नहीं समझता है मन मेरा ?


क्यों बार-बार ?

उसको फिर से पाने की

आस लगाता है मन मेरा।


काश एक बार

फिर से तुम कह दो

वह सब सच था,

तुम्हारे झूठ को

सच मानकर


खुश होना चाहता है

मन मेरा।


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