आखिर क्यों जाग रहा हूँ मैं ?
आखिर क्यों जाग रहा हूँ मैं ?
सुना है रातें,
सोने के लिए होती हैं,
फिर मैं क्यों जाग रहा हूँ ?
अंधेरा तो जग में,
विश्राम के लिए होता है,
फिर मैं क्यों भाग रहा हूँ ?
दूर कहीं सिरहाने में,
वो करवटें बदल रही है,
उसकी बाहों की गर्मी के जगह,
यहाँ क्यों ठिठक रहा हूँ,
आखिर इतनी रात गए,
मैं क्यों जाग रहा हूँ ?
कहीं मैं ऊल्लू तो नहीं,
या शायद चमगादड़ ही सही,
या कही निशाचर तो नहीं,
मैं बन गया हूँ,
आखिर इतनी रात गए,
क्यों जाग रहा हूँ ?