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Sandeep Suman Chourasia

Abstract

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Sandeep Suman Chourasia

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अँधेरी राहे

अँधेरी राहे

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वो दसवीं की,

पहचानी राहें,

क्यों छोड़

गले लगा ली मैंने


वो अनजानी-अनचाही,

वो अँधेरी राहें,

होस्टल का वो अकेलापन

हरपल-हरदम मुझे खाए


क़िताबों ले मध्य भी

बस माँ का चेहरा नजर आए

शहर बाद था पर दिल छोटा था,

भीड़ बड़ी थी पर खाली


यहाँ हर कोना था,

सुख में हँसना और

दुःख में रोना भी यहाँ अकेला था,

क्यों चुन ली मैंने ये,

अनजानी-अँधेरी राहें।



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