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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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आजकल

आजकल

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लोग आजकल बहुत ही बनावटी हो गए हैं

कौए ही आजकल हंस चुगने वाले हो गए हैं


ज्ञानी लोग तो बस आज़कल चुप ही रहते हैं

मूर्खो के संवाद आजकल ज्यादा हो गए हैं


कहना नहीं लेकिन कहना बहुत ही जरूरी हैं

हंस तो हो गये हैं आजकल गहरे काले


कौये दूध से ज़्यादा सफ़ेद हो गये हैं

कामचोर ही अब तो मेहनती कहलाता है


कर्मयोगी तो आजकल प्यासे ही सो गये हैं

खुदा ही जाने क्या होगा दुनिया का अनपढ़


नेता ही आजकल हमारे भाग्यविधाता हो गए हैं।


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