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Akshat Shahi

Abstract

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Akshat Shahi

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आज़ादी

आज़ादी

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बेचैन हैं हालातों पर 

हालातों से मजबूर नहीं 

बेचैनी को पंख लगा कर 

आज़ादी की उड़ान भरें


नाकामी का ग़म कहाँ

रोके जो उड़ानो को 

लहर नहीं हैं नदिया की 

बांध से जो मुड़ जाएँगे


आज़ाद गगन के पंछी हैं

हमको क्या रोक पाओगे 

चोखे पहने छोड़ चले 

हिंद की बातें भूल चले


साथ मिल सब उड़ान भरें 

आज़ादी की बात करें

सड़कों पर फिर रंग भरें 

इकाई की किताब पढ़ें


वो जो रूठे बैठे हैं

हिन्दू मुस्लिम कहते हैं

उनको भी आज़ाद करें

डर है उनको उतना ही


जितना हमको लगता है

वो सच कहने से डरते हैं

हम उनके झूठ से डरते हैं

चलो अब सब साथ चलें


नई दुनिआ की बात करें

एक नया क़ानून बनाते हैं

हर मंदिर में आज़ान सुनेगी 

हर मस्जिद में आरती 


आज़ान में हर हर नाद बजे

मंदिर में हो फ़ारसी

पेड़ों को हम देव कहें

नदियों को जम जम कूप कहें


जिस हवा में हम सांस भरें

उस हवा को आज़ाद करें 

टुकड़े टुकड़े बिखरे हैं

टुकड़े जोड़ एक घर बने

आज़ादी की बात करें।


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