अकेला
अकेला


ईंट को ईंटों से जोड़कर,
खुद को अपनों से तोड़कर,
अलग सा एक घर बनाकर,
तुम किस कदर बेफिक्र हो गये।
रिश्तों को जमीन में गाड़कर,
उस पर चमकीला फर्श सजाकर,
तुम पुराना आंगन छोड़ गये
खुद की खुशी के वास्ते।
ना जाने तुम ये क्या कर गये,
खुद को दूसरों से बड़ा बनाकर।
घर में इंसानों की जगह पर,
साज़-ओ-सामाँ भरकर,
तुम अंदर से कितने खाली हो गये।