तम का नाश
तम का नाश
जिधर देखो उधर ही आज अंधकार है
नही दिख रहा है, हमें कोई दीपकार है
सब के सब आज उजाले से डरे हुए हैं
आज अंधेरे के आगे सब ही लाचार है
आज इंसान तम को खुदा मान बैठा है
तम से नहा धोकर कर रहा वो बलात्कार है
उजाले को वो अपना दुश्मन समझ बैठा है
उजाले से कर रहा वो आज हाहाकार है
एकदिन इंसान तेरा ये भरम टूट जायेगा
कब तक इंसान तू उजाले को रुलायेगा
एकदिन अपने आँसू से ही तू जल जायेगा
क्योंकि हमसे बड़ा तो वो ख़ुदा फ़नकार है
तम की निशाँ को अब तू अलविदा बोल दे
भोर की किरणें कर रही तेरा इंतज़ार है
उजाले को तू अपना बना ले,तम को तू भगा दे
तम से नही उजाले से ही हुए सदा चमत्कार है
