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Garima Mishra

Abstract

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Garima Mishra

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पार्ट ऑफ़ माई हॉस्टल डायरी

पार्ट ऑफ़ माई हॉस्टल डायरी

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जिस शाम हम मिले थे

यही करीब साढ़े सात बजे थे


मैं तुम्हें देखकर सिर्फ मुस्कुराई थी

हमारे कमरे में नई रूममेट आई थी


तुम्हें सुनाने के लिए हमने कितनी कहानियाँ बनाई थी

और तुम बड़ी मासूमियत से हमारी कहानियों के झांसे में आई थी

शायद तुम्हारी वही मासूमियत मुझे तुम्हारे करीब ले आई थी


फिर कमरा बदल गया

रुमीज़ बदल गए

मगर प्यार नहीं बदला

उसने तो अपनी जगह वैसे ही बनाई थी


दो साल तक झगड़ा, प्यार, एक दूसरे की फिक्र

खुद से भी ज्यादा होती रही

मैं तुम्हारे दर्द में रोती रही

तुम मेरे तकलीफ में समझाती रही


उस शाम हम अलग हुए

गलतफहमियों को भनक पड़ गई

वो दोस्ती जिसपर सबकी नज़र थी

वो बिना वजह के खत्म हो गई।। 


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