इक शाम सा हूँ मैं बौराया
इक शाम सा हूँ मैं बौराया
मुद्दत हो गयी मैंने तुझको भेजा ही नहीं कोई डाक सनम
मैं साथ ही हूँ साँसों की तरह ,तू खिड़की को ना ताक सनम
ये हिज्र भी बड़ा है सौदाई ,दर पर मासूम सा आ जाये ,
मैं दरवाजा गर खोलूँ तो ,हो जाता है बेबाक सन
हम बादल जो बन जायेंगे ,तेरे घर के ऊपर आयेंगे ,
हम बिजली ना चमकायेंगे ,हमे दुश्मन में न आँक सनम
हमने तुमको सच्चा जाना ,कुछ कह पाया इन गज़लों से ,
न हम ही थे मायूस कभी ,न तुम ही थे चालाक सन
ये जीवन सुबह की है धूप ,इक रात ने चुपके से बोला ,
इक शाम सा हूँ मैं बौराया , हूँ खुद पे अब आवाक सनम
तूने पूछा था जाते पल ,क्या दूँ तुझको ए "नील " मेरे ,
तू दर्जी है मेरे मन का , दे सपनों के पोशाक सनम