STORYMIRROR

Abhishek Sinha

Abstract

3  

Abhishek Sinha

Abstract

झील

झील

1 min
285

किसी ने झील की गहराई मापी

किसी ने झील में पत्थर मारा

कोई तैराक था तो दी झपकी

किसी ने खून बहाकर मारा


किसी ने धूल की तिलांजली दी 

कर दिया सर का आग़ाज़ 

किसी ने जोड़ दिया नहरों से

उसे दरिया बनाकर मारा


किसी ने भेजा धूप को जो 

ले गया बादल के तोहफे

किसी ने ज़मीं और बादल के

बीच में आकर मारा 


किसी ने खोल दिया नौकाओं का 

एक अनोखा सा शहर

किसी ने सब ख़त्म करने का

एक आखिरी मोहर मारा


"नील " इस झील के उस पार ही 

इसकी मर्ज़ों की दवा होगी

ऐसा लगता है  इस पार तो

वक्त ने  हर चारागर मारा



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract