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Mayank Kumar 'Singh'

Romance

5.0  

Mayank Kumar 'Singh'

Romance

आज सुबह जल्दी उठा

आज सुबह जल्दी उठा

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नींद भला कब टूट गई

खुद को कब व्यवस्थित किया

पता ही नहीं चला

लेकिन आज सुबह जल्दी उठा !


हो सकता है दिल की बेचैनी

ने जगाया हो ,

या फिर व्याकुलता ने उठाया हो

लेकिन आज सुबह जल्दी उठा


उठते ही खिड़की खोला,

आसमान से आँसू टपक रहे थे

खुशी थी या व्याकुलता

कुछ समझ नहीं पाया !


लेकिन आज सुबह जल्दी उठा

हो सकता है बारिश की बूँदें,

आकाश की वेदना कह रही हो

धरती भी तो हर्षित थी

खैर जो भी हो

लेकिन आज सुबह जल्दी उठा !


सब ठीक ही कहते हैं ,

जो मेरे निजी बंधु हैं

वह मेरे काबिल ही ना थी

क्योंकि मैं कहां कवि बेचारा

और वह कहां उर्वशी थी

खैर जो भी हो

आज सुबह जल्दी उठा !


लेकिन फिर बात वही अटकी

जहां पहले अटकी थी,

दिल में उर्वशी को ही रखना है

तो फिर थोड़ा अटपटा है।

खैर जो भी हो

आज सुबह जल्दी उठा !


कवि हूं मानता हूं

अनगिनत भावनाएं हैं

लेकिन कोई मेरे लिए

राधा तो बने

तब मानता हूं

प्रेम सच्चा है

अन्यथा व्यर्थ !


खैर जो भी हो

आज सुबह जल्दी उठा ।।



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