“आज फिर मैं सो नहीं पाया हूँ”
“आज फिर मैं सो नहीं पाया हूँ”
आज फिर मैं सो नहीं पाया हूँ
तुम्हारी वो इक तस्वीर मिली है
पुरानी अलमारी के दराज में रखी
छुपाया था जिसे मैंने कभी किताब में
इस डर से कि कोई देख ना ले
या खुद देख कर याद में ना रोने लगू ।
रुख़सती के वक़्त वादा किया था मैंने
नहीं बिखरुंगा अब कभी तेरे ख़याल से
मगर ज्योंही कागज़ पर साया नज़र आया
वादा यूँ टूट गया जैसे कोई बिखरा कांच
बहुत कोशिश की है मैंने
सख़्त दिल बनने की यहाँ
मगर ना जाने क्यूँ, फितरत बदलती नहीं
बस तुझे ही बेइंतहा चाहती रही है
कई दफ़ा तेरे नाम को भी
अपने नाम से जोड़ता रहा हूँ मैं
अपने तख़ल्लुस में भी तेरा नाम शुमार कर लिया
मगर हयात में तू फिर साथ क्यूँ नहीं है ?
शब में गहरा सन्नाटा रहने लगा
मेरी तरह ये भी तन्हाई में जल रही है
शायद इसे वो नूर याद आ गया
जिसके लिए मैं कभी यूँ दीवाना था
जैसे बरसते मौसम का आवारा बादल ।
जब भी तुम मेरे आसपास होती थी
बारिश शुरू होने लग जाती
इशारा था वो कायनात का
मैं जिसे बखूबी समझ जाता था
मगर तुम बहुत डरती थी
भीगने से, इश्क़ में डूबने से ।
अश्क़ यूँ रुख़ को नम कर रहे है
जैसे बारिश में छत से रिसता है पानी
बहुत रोया हूँ मैं उन तन्हा रातों में
जब तुम कहीं दूर चली गयी थी
और मुझे ज़रूरत थी हमसफ़र की ।
हर नक्श में मैंने तेरा चेहरा तलाशा है
आज तक भी क्यूँ मुझे यक़ीं ना हो पाया
कि तुम तो जा चुके हो कब के दूर
मगर यह दिल फिर भी कहता है
वो ग़ुज़ारिश मेरी कभी तो पूरी होगी
आज फिर मैं सो नहीं पाया हूँ
शायद, तेरी तस्वीर रूह में बसी है