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Adv. Anjali Pandey

Abstract Fantasy

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Adv. Anjali Pandey

Abstract Fantasy

आज फिर एक बार

आज फिर एक बार

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सुन-ए-ज़िन्दगी...

ख्वाहिशों में आज भी जिंदा रखती हूँ मैं तुझे...

दुनिया से छिपाकर खुद में तन्हा "आतंकी" सी रखती हूँ मैं तुझे...

फिर भी तू जो रूठ गई है न मुझसे...

देख आज फिर एक बार यादों के पन्नों में संजोकर रखती हूँ मैं तुझे...!!


तन्हा रातों में अजनबी मुलाकातों में ढूंढती हूँ मैं तुझे...

खुद से रहती अनजान "आतंकी" पर ढूंढती हूँ मैं तुझे...

फिर भी तू जो दूर गई है न मुझसे...

देख आज फिर एक बार यादों के पन्नों में जिन्दाकर ढूंढती हूँ मैं तुझे...!!


छिपाकर मन की पीर आज भी आंसुओं से लिखती हूँ मैं तुझे...

है समंदर पीर का अंदर, पर छिपकर तन्हा "आतंकी" सी लिखती हूँ मैं तुझे...

फिर भी तू जो भूल गई है न मुझको...

देख आज फिर एक बार यादों के पन्नों में नयन भिगोकर लिखती हूँ मैं तुझे...!!



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