आज मैं चाहता हूँ
आज मैं चाहता हूँ
आज मैं चाहता हूँ कि तुमको भुला दूँ ,
सँजोए सभी अरमानों को अब मैं सुला दूँ ,
भूल जाऊँ उन लम्हों को ना ख़ुद को सज़ा दूँ
नमीं इन पलकों की अब मैं सुखा दूँ ।
जानता हूँ अब तुम पास न आओगी
ना मुझको छेड़ोगी और न ही मनाओगी ।
फिर जाने क्यों दिल तुम्हें चाहता नहीं भूलना
उन टूट चुके ख़्वाबों में चाहता है झूलना ।
जानता हूँ कि अब मुश्किल मिलन होगा अपना
था ये इक ख़्वाब और रह जाएगा ये सपना ।
फिर जाने क्यों बेमौसम आँखें लग जाती हैं बरसने
देखती हैं राह, फिर लग जाती हैं तरसने ।
जानता हूँ कि ज़िन्दगी में अब अकेले ही रहना है ,
इस वीराने के अपनेपन को ही अब सहना है ।
फिर जाने क्यों ढूँड़ता हूँ साथी तो पलकें छलक आती हैं ,
देखता हूँ उन अश्कों में तो तेरी सूरत झलक आती है ।
अब तुम्हीं बता दो कैसे मैं तुमको यूँ ही भुला दूँ ,
यादों के आँगन से दीपक तुम्हारा मैं कैसे बुझा दूँ ।
भूल जाऊँ कैसे मैं उन लम्बी सी रातों को
उन रातों में हुई प्यारी सी बातों को ।
आज मैं चाहता हूँ कि तुमको भुला दूँ ,
सँजोए सभी अरमानों को अब मैं सुला दूँ ।