आज का आदमी
आज का आदमी
रिश्तों की दुनिया में
बदल गया है आदमी।
अपने ही चक्रव्यूह में
फंस गया है आदमी।
पैसों के कोलाहल से
बहरा हो गया है आदमी
इस शहर की भीड़ में
अकेला हो गया है आदमी।
अपनों के बीच में
तन्हां हो गया आदमी।
रोशनी के चकाचोंध
में खो गया है आदमी।
मंजिल बहुत दूर फिर
चल रहा है आदमी।
पैसों की इस दुनिया में
गरीब हो गया है आदमी।