पुराने खत
पुराने खत
बहुत दिनों के बाद
अपने पुराने खतों को
करीब से देखा
तो पाया
वही शब्दों की बेसब्री
वही उनका झगड़ना
कहीं हर्फों का मुंह मोड़ना
वही कलम का तड़पना
वही काग़ज़ था
वही थे पन्ने
जिन्होंने सोख लिया था
उस वक़्त
मेरा भीगा मन
जो अगर बह जाता
तो सब काला कर जाता
वो मन
गीली लकड़ी-सा
जो जलता
तो चुभता उसका धुआँ
इन आँखों में।
आज जब
उन ख्वाहिशों के
पन्ने पलटे
तो खामोशियाँ बोल उठीं
उन्हीं ख़्यालों की टीस में
उन्हीं जज़्बातों की
गर्मी लिये
जब ख़ूबसूरत शब्दों से
लिखा करते थे
मन का हाल
आज भी वो लम्हे
कर जाते हैं
इस दिल को
कभी नम तो
कभी सतरंगी
जो बिखरे हैं
लफ़्ज़ बनकर
उन पुराने खतों के
ढेर पर।