STORYMIRROR

Mukesh Bissa

Abstract

4  

Mukesh Bissa

Abstract

पुराने खत

पुराने खत

1 min
319

बहुत दिनों के बाद

अपने पुराने खतों को

करीब से देखा

तो पाया 

वही शब्दों की बेसब्री

वही उनका झगड़ना

कहीं हर्फों का मुंह मोड़ना

वही कलम का तड़पना  

   

वही काग़ज़ था

वही थे पन्ने

जिन्होंने सोख लिया था 

उस वक़्त

मेरा भीगा मन 

जो अगर बह जाता

तो सब काला कर जाता

वो मन

गीली लकड़ी-सा

जो जलता

तो चुभता उसका धुआँ 

इन आँखों में। 


आज जब 

उन ख्वाहिशों के 

पन्ने पलटे 

तो खामोशियाँ बोल उठीं

उन्हीं ख़्यालों की टीस में 

उन्हीं जज़्बातों की 

गर्मी लिये 

जब ख़ूबसूरत शब्दों से 

लिखा करते थे

मन का हाल


आज भी वो लम्हे 

कर जाते हैं

 इस दिल को

कभी नम तो 

कभी सतरंगी

जो बिखरे हैं 

लफ़्ज़ बनकर 

उन पुराने खतों के

ढेर पर



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract