कुछ आंखों से
कुछ आंखों से
जैसे ओस तल पर रहती है
जरा सी चिढ़ाने पर हिला दिया
मन के घाव बहुत सूक्ष्म हैं, बहुत गहरे हैं
सूरत एक नए फूल की तरह है
पर सच तो आँखों में छुपा है
तनों पर सूखी पंखुड़ियाँ
सभी मूक
आप अपने पैर कहाँ रखते हैं?
किस दिशा में मिलेगी संतुष्टि?
पंथो पर बारिश हो रही है सुमन
दरवाजे खोलो, सपने देखो
हाथ इतना इंतजार कर रहे हैं
दिल में उठते हैं सवाल
उम्मीदों को घूरते हुए
अपनों के चेहरे, फिर स्तब्ध!
पूर्ण सुखी संसार कहाँ है?
सर्वशक्तिमान भी विफल हो गया है
सीमित मानव सीमा
बुनें सारी मुसीबतें, स्वत: रे!
तो यहाँ मिट्टी पर एक खुरचनी है
आशा के बीज बोना
चोरी करते समय देखना
मंत्रमुग्ध झूले, सुनहरे सपने।