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Mukesh Bissa

Abstract

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Mukesh Bissa

Abstract

अभी शेष है

अभी शेष है

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जीवन हाथों से निकल गया

बस खाली मुट्ठी शेष है


कुछ पाया इस जीवन में

फिर भी इच्छाएं शेष है


दुनिया से क्या खोया पाया

बस हिसाब लगाना शेष है


वैसे तो जीवन सुखमय है

पर फिर भी संतोष शेष है


औरों की पीड़ा देख समझ

अपनी आंखें नम होना शेष है


मन के अंतर में छिपे द्वंद

इस प्रश्न का उत्तर शेष है।


इस अंधेरी सी बस्ती में

इक दीप जलाना शेष है


तीन पहर तो बीत गये

बस एक पहर ही शेष है


जीवन हाथों से फिसल गया

बस खाली मुट्ठी शेष है ।



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