आज एक और दिन
आज एक और दिन
आज एक और खूबसूरत दिन
प्रकृति का जीवन को
अमूल्य उपहार।
सुखी हुयी नदियों से
बने हुये अनगिन रास्ते
रेत हुये समुन्दर में
बच्चों की धमाचौकड़ी
हवा की झुरझुराहट से
टूट टूट कर गिरती हुयी
सूखे दरख्तों की टहनियां।
मन की बेचैनी भी
जैसे इतिहास हो गयी है
कानफाड़ू शोर
जैसे नेपथ्य में चला गया है।
यकीनन कुछ विस्मयकारी है आज
सुना था सूर्य की रश्मियां
रौशनी फैलाती हैं
अंधेरे को निगल जाती हैं।
पर आज बोल रही हैं
गुनगुना रही हैं
वही कभी सुना हुआ
मनुष्यता का राग।
नये शब्द हैं
नया प्रेम है।
यूँ ही बदलता रहा है
पूरा परिवेश और यूँ ही
जैसे बदल रहा है।