आईना
आईना
आईना तू ही तो है मेरी सच्ची सहेली,
तेरे समक्ष पाती नहीं खुद को अकेली।
मेरी बुराइयों को सदा तूने मुझे दिखाया,
झूठा अक्स दिखाकर कभी न भरमाया।
जब जैसा भी रहता है मेरे अंदर का हाल,
तू बताती कि सही है या बदलनी होगा चाल!
तेरे सामने करती जी भर कर अपना अभ्यास,
बताती है ठीक है या करना होगा और प्रयास
जीवन में जब कभी खुशनुमा पल है आया,
तूने श्रृंगार का सटीक व सही रूप दिखाया।
तेरे सामने बैठकर कर लेती जी भर बक-बक,
कभी नहीं उबती और न कहती कि तू गई थक
व्यस्तता भरे जीवन का अजीब यह दौड़ है,
तुझ सा साथी अब मिलता नहीं कोई और है!
आईना हर पल मुझे यूं ही मेरी सच्चाई बताना,
बढ़ती उम्र में भी कभी मुझे झूठा मत बनाना!
मेरा साथ आजीवन ऐसे ही तुम निभाती जाना,
समय के अभाव का कभी मत बनाना बहाना!