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आहत मन

आहत मन

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मन बहुत आहत होता है,

जब मैं देखती हूँ

हिमालय पर जमी स्फटिक शिला सी बर्फ

पिघल कर सड़कों पर बहने लगती है।


मन बहुत आहत होता है

जब मैं पाती हूँ

जिस ऊँचाई को छू लेने की ललक थी मन में

हाथों से फिसल कर कहीं दूर चली जाती है।


मन बहुत आहत होता है,

जब मैं अनुभव करती हूँ

यत्नपूर्वक मन्दिर में बिठाई गई मूर्ति,

सहसा देवत्व हीन हो जाती है।


मन बहुत आहत होता है

जब मैं सोचती हूँ,

हर नए अवमूल्यन की हर बात 

सहज भाव से स्वीकार कर ली जाती है।


मन बहुत आहत होता है।



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