आहत अभिमान
आहत अभिमान
ओ बीते पथ के राही
इधर अब मत आना।
नयनों में ऑंसू ले लेकर
पूजा का थाल सजाया था,
पलकों में प्रतीक्षा गीत संजो
सपनों को दुलराया था।
वे गीत हमारे बन न सके,
तुम हमारे हो न सके।
ओ बीते पथ के राही
इधर से मत आना।
मन कहता मान मान
बीती बातों को भूल जाने दे।
नेह लगा प्रियतम से
जीवन सफल बना ले तू।
पर आहत अभिमान कहता
मत अब प्राण दीप जला तू।
एक सपनों का छोड़ सहारा
जीवन की धरती को छू।