आदतन हमने जब...
आदतन हमने जब...
आदतन हमने जब उनसे तहरीर-ए-वफ़ा पूछी,
उसने भी बा-दस्तूर-ए-आदत अपनी तौहीन-ए-इश्क़ जानी...
सफाई आज़ार-ए-बस हमने फिर जो देनी चाही,
उसने भी फिर पर्दा-ए-गुस्ताख़ी उसे जानी...
“रुख़ पे सजाए रात सा क्यों बैठी हो ये ख़ौफनाक मंज़र ?”
“हो तुम बदसलूक बदमिज़ाज बात हमने है आज ये जानी”...
“हुई क्या ख़ता क्या ज़ुल्म तुमपे बताओ बरपाया ?”
“आज तक भी तो ना कोई बात तुमने ही मेरी मानी”...
“सूरत-ए-इशारा तो कर क्या है मौज़ू इस तेरी परेशानी का ?”
“गफलत-ए-शिआरी है अंदाज़ तेरा और है हर बात बेमानी”...
“धोके से भी कभी ना तैश-ए-जफ़ा की तुझपे कामिल !”
“माना ही नही मुझे अपना तूने ये आज बात है मैंने जानी”...
“होता जो तू मेरा तो तेरे गम भी मेरे होते,
तेरी वफ़ा के लश्कर संग सैलाब-ए-दर्द भी मेरे होते”,
“होते तेरे नाले मेरे तेरी हर नज़्म की तरह,
तेरी रूहानियत सा मरहम घाव-ए-लानत भी मेरे होते”,
“होती हर नज़ाकत सी हर अदावत भी तेरी मेरी,
मुस्कराहट ही नहीं नज़र-ए-नीर भी मेरे होते”,
“होता हर आगाज़ भी और हर अंजाम भी मेरा,
सूरत-ए-माहताब ही नही रूह-ए-आफ़ताब भी मेरे होते”,
“बाज़ुओं की ताक़त संग संग होती हर कमज़ोरी मेरी,
खुली किताब-ए-ज़िन्दगी बंद ख़्वाब के पन्ने मेरे होते”,
“होता जो युँ तो तू होता मेरा मैं ना होती तेरी,
ना तेरे ना मेरे इश्क़-ए-आयाम हमारे होते”,
“वक़्त की हर साज़ पे लगाती ठुमका फिर ज़िन्दगी,
बहारें इश्क़ की इश्क़ के हर नज़ारे होते”,
“वक़्त रहते जाओ संभल के जो है हर घड़ी मेरे संग बितानी !”
“समझ गया इशारा तेरा के हाँ उम्र है हर मुझे 'नाज़' तेरे संग निभानी”....
