आदत से मजबूर
आदत से मजबूर
भौतिक सुविधा जुटाने को, कितना परेशान इंसान है ।
खुद भटक गया उस रास्ते से ,जो उसका अज्ञान है।।
बड़े भाग्यशाली हैं हम, जो जीवन मानव का पाया है,
फिर भी ना जाने क्यों वह किस कारण इठलाया है,
भेजा था अच्छे कर्म करने को बन बैठा शैतान है।
खुद भटक .......
जिसको देखो, जहां पर भी देखो सबको अपनी ही पहचान है,
सबको अपने बारे में ही चिंता ,औरों का कोई न भान है,
सदाचार तो लुप्त ही समझो ,दुराचारी बन बैठा इंसान है।
खुद भटक.....
बुरे भावों की गठरी लादे ,सिर पर घूमता इंसान है,
इन भावों के कारण से ही दु:ख उठाता इंसान है,
अपने हित के खातिर ,गैरों का करता नुकसान है।
खुद भटक....
अनैतिकता को सब कुछ समझ बैठा, सदाचार का ना ख्याल है, व्यवहारिकता को है भूल बैठा, इतना बुरा हुआ हाल है,
मार रहा खुद पांव कुल्हाड़ी ,इस युग का इंसान है।
खुद भटक......
प्रेम भाव की कोई बात न करता, ईर्ष्या से भरा अहंकार है,
उनका जीवन मरुस्थल है बनता, ऐसा उसका संस्कार है,
धन -दौलत सब उसकी हो जाए ,चाह रहा इंसान है।
खुद भटक ....…