आदि से अनंत तक
आदि से अनंत तक
आदि से अनंत तक
यत्र तत्र सर्वत्र
मन के सौरमंडल का
तू ही तो है नक्षत्र
मेरे रोम रोम में प्रवाहित
सिर्फ़ तेरा ही वर्चस्व
इस हृदय की सम्पत्ति का
तू बहुमूल्य अंशपत्र
सुन्दर सुखद एकांत सी
स्थिति नहीं थी पूर्वत्र
मेरी जय विजय का
तू एकमात्र अग्न्यसत्र
तुझ बिन अधूरा सा है
प्रेम का तालपत्र