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Anushree Goswami

Drama

4.3  

Anushree Goswami

Drama

आभास

आभास

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थी कमरे में कैद,

या कैद थी अपनी ही -

आकांक्षाओं में,

चुप तो थी बाहर,

भीतर बड़ा शोर था,

अलग नहीं थी उनसे पर,

अलग कर लिया था,

वो भी एक वक्त था,

जब हँसना छोड़ दिया था।


लाख समझाया खुद को,

पर समझ थी ही कहाँ,

वो बचपन भी था कैसा बचपन,

जब खेलना छोड़ दिया था।


आज जब नींद खुली,

एहसास हुआ,

कुछ रह गया पीछे,

कुछ अपना - सा,

आँखें बंद की तो,

आभास हुआ,

बचपन पीछे छूट गया।


मैं जस की तस बैठी रही,

वो बचपन मुझे निहा

रता रहा,

फिर पास आया मेरे और कहने लगा,

तुमने जीना पीछे छोड़ दिया।।

फिर उँगली थाम कर वो मेरी,

चार कदम को आगे बढ़ा,

संग उसके एहसास हुआ,

मैंने चलना पीछे छोड़ दिया।


अब करती क्या,

आँखें भर आईं,

अश्रु पोछकर मेरे वो,

तुतलाकर कहने लगा-

अब तो मैं भी शून्य, तुम भी शून्य,

चलो शून्य से शुरू करते हैं !


थोड़ा - सा और रोई मैं,

फिर देकर एक मुस्कान उसे,

आगे बढ़ी थामे हाथ उसका,

कुछ बदल गया, एहसास हुआ,

शायद, आज मैंने,

जो छूटा, पीछे छोड़ दिया।।


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