52. युद्ध
52. युद्ध
युद्ध से कभी
किसी का भला नहीं होता
होता है निर्दोषों का
रक्तपात
किसी की कलाई
हो जाती है सूनी
किसी का पुत्र
बिछुड़ जाता है
हमेशा के लिए
कोई बहन
रक्षा सूत्र लेकर
इंतजार करती रहती है
और भाई आ पाता नहीं
रक्षाबंधन पर
पिता के नेत्र
ताकते रह जाते हैं
देहरी की ओर
कोई आहट आती नहीं
फिर किस लिए युद्ध
किसके लिए युद्ध है
सब यहीं रह जाता है
कुछ भी साथ
जाता नहीं है
हे मानव !
युद्ध का प्रतिकार करो
मानव हो
हृदय में मानवता रखो
जिसमें एक दूसरे के लिए
भाईचारा हो
स्नेह हो, आशीष हो
पृथ्वी हरी भरी रहेगी
जियो और जीने दो
यही सत्य है
और सत्य स्वीकार करो
और सत्य स्वीकार करो !
