45. विषाद
45. विषाद
1 min
8
आकाश की ओर
देखता रहा
धरती पर
गहराता अंधेरा
बढ़ता हुआ सा
हर्ष का विलोम
विषाद की कालिमा
पसरती गई
याद किया ईश्वर को
आंखें मूंदे
और उस दुख के
चेहरे पर
चमक उठी
सुख की हँसी
जैसे किसी
सूखे पेड़ पर
हरीतिमा छाई
और कोई पुष्प
प्रस्फुटित हुआ
अभी-अभी !