24. माँ
24. माँ
पिता गहरी छाँव जो
जीवन धूप है माँ
धरा पर कहाँ यहाँ
तुम सा कोई
स्वरूप है माँ
अगर ईश्वर है कहीं
देखा कहां है किसने
धरा पर ईश्वर है कोई
तो वह बस रूप है माँ
हर एक आहट पर
चौक पड़ना
और फिर दुआ देना
मेरे घर लौट आने तक
जागती रहती है माँ
जरा सी देर हो जाए
सबसे पूछती है माँ
पलक झपके बिना
देहरी ताकती है माँ !