नींद
नींद
जब से कमर में मुआ दर्द शुरु हुआ है यह छड़ी ही जीने का सहारा हो गयी है पर बहू के मुँह से यह कहते सुन कि “दोपहर में दोघड़ी आराम से कमर सीधी करने के मिलते हैं और ये छड़ी की ठक-ठक चैन से सोनें भी नहीं देती।”
मन बहुत दुखी हो गया पूरी बात सुने बिना ही वह वहाँ से हट गयी और आज जब सोकर उठने पर छड़ी के लिये हाथ बढ़ाया तो वह कहीं नजर ही नहीं आई।
बुढ़ापे में बीता समय बहुत याद आता है। वर्षों पुरानी बीती बात याद आने लगी थी जब नई बहू की सैंडिल की खट खट से परेशान हो कर इन्होंने उसके सैंडिल ही एक बार दोपहर के समय छिपा दिये थे। वो अलग बात थी कि शाम होते होते बहू के पैरों में नई सैंडिल चमक रही थी और पहले से भी तेज खट खट जारी थी।
पर आज बात हमारी छड़ी की थी अगर किसी ने उसे गायब कर दिया है तो वो कौन नयी लायेगा। कुछ सोचते हुये मजबूर हो कर पोते को आवाज दी, ”बेटा दादी की छड़ी देखी कहीं।“
तभी बहू मुस्कुराते हुये हाजिर हो गयी बोली, ”ये लीजिये आपकी छड़ी।“
हाथ में अपनी प्यारी छड़ी ले कर अभी चलने का उपक्रम किया ही था, कुछ कदम चली भी पर यह क्या कोई ठक-ठक नहीं, यह क्या।
अच्छी तरह छड़ी का मुआयना किया, उसे निहारा तो पाया कि छड़ी के नीचे रबर की तली लगी हुई थी।
अब कोई आवाज नहीं हो रही थी। बहू भी चैन की नींद ले रही थी। हम भी मजे से चहलक़दमी में लग गये थे।