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Akanksha Gupta

Romance

5.0  

Akanksha Gupta

Romance

प्यार एक मिसाल

प्यार एक मिसाल

7 mins
559


सुधीर कॉन्फ्रेंस में पहुंच चुका था। वहाँ पर उसका व्यक्तव्य होना था। वहाँ पर उसे बहुत से लोग मिले जिन्हें वह जानता था लेकिन उस की नजर किसी एक खास व्यक्ति पर जाकर टिक गई। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके मन का भूला बिसरा सवाल फिर उसके सामने खड़ा था।

"क्या यह वाकई वह है लेकिन..?" सुधीर को अब भी यकीन नहीं हो रहा था।

"चलिये सुधीर जी, लोग आपका इंतजार कर रहे है। "सुधीर का ध्यान टूट गया।

उसके व्यक्तव्य का समय हो गया था। उसने अपना व्यक्तव्य बेख्याली में पूरा किया और वहाँ से जल्दी निकल आया। पूरे रास्ते वह इसी उधेड़बुन में लगा रहा कि उसने जिसे देखा वह सच था या उसकी कल्पना।

अपने घर पहुँच कर उसने बैचेनी से कपड़े बदले और बिस्तर में लेट गया। घर पर कोई नहीं था सिवाय एक नौकर के। उसकी नींद कोसों दूर थी। वह अपनी जिंदगी के पुराने लम्हों की ओर लौटकर जा रहा था।

सुनिये, फर्स्ट ईयर की क्लास किधर है।" एक लड़की की आवाज़ आई।

"जी आगे से दाहिने बढ़कर पहला रूम।" सुधीर ने बताया।

"वैसे आपका नाम जान सकता हूँ?" सुधीर ने उत्सुकता से पूछा।

"जी श्रुति कपूर।" लड़की ने धीमे स्वर में कहा।

सुधीर को उसका व्यवहार काफी संतुलित लगा। धीरे-धीरे उनका औपचारिक परिचय दोस्ती में बदल गया और फिर प्यार में। सुधीर एक सम्पन्न परिवार से था और श्रुति एक मध्यमवर्गीय लड़की थी। उनके परिवारों में इस बात को लेकर कोई मतभेद नहीं था क्योंकि दोनों एक दूसरे के परिवार की बहुत इज़्ज़त करते थे।

सब कुछ ठीक चल रहा था। दोनों अपने भावी जीवन को लेकर बहुत खुश थे। दोनों अपनी पढ़ाई में काफी ध्यान दे रहे थे। चूँकि सुधीर, श्रुति से सीनियर था इसलिए वह अपनी पढ़ाई पूरी कर श्रुति से पहले ही कॉलेज छोड़ कर चला आया। दोनों ने एक दूसरे से संपर्क नही तोड़ा। सुधीर श्रुति की पढ़ाई में मदद करता रहा। इसी तरह समय बीतता गया और श्रुति के अंतिम चरण की परीक्षा का समय नज़दीक आ गया।

उस दिन पहली परीक्षा थी। सुधीर, श्रुति को शुभकामनाएं देने पहुंचा। श्रुति उसका ही इंतजार कर रही थी।

"सुधीर अच्छा हुआ कि तुम आ गए। मुझे बहुत घबराहट हो रही है। "श्रुति ने बेचैनी से कहा।

"क्यो तुम पहली बार तो एग्जाम नही दे रही हो, फिर क्या हुआ?" सुधीर परेशान हो गया।

"तबियत ठीक नहीं लग रही है कुछ दिनों से। थकान रहती है हर वक्त।"

"तुम्हें डॉक्टर को दिखा लेना चाहिए था। इतनी लापरवाही ठीक नही।" सुधीर चिंता जताते हुए बोला।

"ओके, एग्जाम खत्म होने के बाद पक्का डॉक्टर के पास जाऊंगी।" श्रुति ने हँस कर कहा।

उसके बाद धीरे-धीरे सभी एग्जाम खत्म हो गए थे लेकिन श्रुति की तबियत ठीक होने के बजाय और खराब हो गई।

जब उसके खून की जाँच की गई तो सब लोग हतप्रभ रह गए। किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसा कुछ भी हो सकता है। सुधीर और श्रुति पर तो मानो वज्रपात ही हो गया।

श्रुति को ब्लड कैंसर था। उनका मन मानने को तैयार ही नहीं था कि उनकी जिंदगी की ख़ुशियाँ इस तरह ग़म के बादल ओढ़ लेगी। डॉक्टर ने बताया कि बीमारी अपने अंतिम चरण में है और अब चाह कर भी कुछ नहीं हो सकता।

सुधीर ने श्रुति की हिम्मत बनने का फैसला किया। वह इस हालत में उसे अकेला नहीं छोड़ सकता था।

वह हरदम उसके पास ही रहता, उसे जो कुछ भी चाहिए होता वह तुरंत उसके लिए ले आता। श्रुति के माँ-पापा खुश थे कि कोई तो है जो इस समय में श्रुति के साथ है। श्रुति के मन में पता नहीं क्या चल रहा था कि वह थोड़ी गुमसुम सी रहने लगी।

एक दिन सुधीर श्रुति के लिये सेब काट रहा था। श्रुति काफी देर से उसे एकटक देख रही थी। सुधीर ने सेब देते हुए उससे पूछा-"क्या हुआ? ऐसे क्या देख रही हो?"

"अब आगे के लिए क्या सोचा है?"

"क्या सोचना है?"

"मैं तुम्हारी शादी की बात कर रही हूँ।"

"हाँ बस तुम कुछ ठीक हो जाओ तो फिर शादी की तैयारी शुरू करते है"

"तुम क्या कह रहे हो? जानते हो ना कि मेरी जिंदगी दवाइयों के ऊपर भी ज्यादा समय तक नही रहेगी और मैं चाहती हूँ कि मेरे जाने से पहले तुम अपनी जिंदगी में सेटल हो जाओ।

"हम लोग साथ क्यो नहीं रह सकते? भगवान ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया?" सुधीर रुआँसा होकर बोला।

"हो सकता है कि भगवान ने कुछ और नई मिसाल सोच रखी हो। "मान जाओ और आगे बढ़ जाओ।" श्रुति ने मनुहार की।

उसने श्रुति के कहने पर संध्या नाम की लड़की से शादी की और सामंजस्य बिठाने की कोशिश करने लग गया। उसके लिये श्रुति को भुला देना आसान नहीं था लेकिन अब उसे यह जिम्मेदारी तो निभानी ही थी। श्रुति ने शहर छोड़ दिया और किसी दूसरी जगह चली गयी।

धीरे-धीरे समय बीत रहा था। शादी को डेढ़ साल हो गया था। इस बीच वह श्रुति के बारे में हालचाल लेता रहता था।

कुछ समय बाद उसके जीवन में एक नया अध्याय शुरू हुआ। उसकी पहली सन्तान, एक बेटे का जन्म हुआ। वह बहुत खुश था। अस्पताल से छुट्टी होने के बाद जब वह संध्या को लेकर घर जा रहा था कि संयोग से सुधीर को कोई मन्दिर दिख गया था और वह बच्चे को लेकर वही उतर गया। संध्या कमज़ोरी की वजह से गाड़ी में ही थी। ड्राइवर गाड़ी को सड़क किनारे लगाने जा ही रहा था कि तभी एक ट्रक ने उनकी गाड़ी को टक्कर मार दी। उस हादसे में संध्या के सिर और आँखों में काफी चोट आई थी। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया।

काफी जाँच करने के बाद डॉक्टर ने बताया कि संध्या की आँखों में काँच के महीन टुकड़े चले जाने की वजह से उसकी आँखो का ऑपरेशन करना होगा और आँखें बदलनी होगी।

संयोग से तभी किसी मरीज के नेत्रदान की बात सामने आई और जो अब इस संसार से विदा ले चुका था। सुधीर तुरंत ही इस ऑपरेशन के लिए तैयार हो गया। सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद ऑपरेशन किया गया जो सफल रहा।

अब सुधीर को श्रुति का ध्यान आया। पिछले दो महीने से वह उसके बारे मे कुछ पता नहीं कर पाया कि उसकी तबियत में कितना सुधार है या कोई परेशानी तो नहीं हो रही है। उसने उसका हालचाल लेने के लिए फोन किया तो पता चला कि कुछ समय पहले उसका देहांत हो चुका है।

यह सुनकर सुधीर सुन्न हो गया। उसे यह सोचकर दुःख हुआ कि वह अपनी दुनिया में इस कदर मग्न हो गया था कि वह अंतिम समय में श्रुति के साथ नही था।

धीरे धीरे वक़्त गुजरा। आज संध्या की आँखों की पट्टियाँ खुलने का वक्त आ गया लेकिन सुधीर का कॉन्फ्रेंस में जाना जरूरी था इसलिए वह जल्दी आने के लिये कहकर कॉन्फ्रेंस में चला आया।

तभी फोन की घँटी से सुधीर की तन्द्रा टूटी। उसने फोन उठाया तो दूसरी ओर से आवाज़ आई-"हेलो सुधीर।"

"जी कौन बोल रहा है?"सुधीर पहचान नहीं पाया।

"मैं संध्या, आपको क्या हुआ है? कोई परेशानी है क्या?" संध्या परेशान होकर बोली।

अरे!आज तो संध्या की आँखों से पट्टी हटने वाली थी। पता नहीं, उसकी आँखें ठीक हुई कि नहीं।

"आप कॉन्फ्रेंस से घर क्यो चले आये? आपकी तबियत ठीक तो है ना?" संध्या उधर से पूछ रही थी।

"तुम कॉन्फ्रेंस में आई थी?" सुधीर आश्चर्यचकित रह गया।

"हाँ मैं आपको सरप्राइज देने आई थी। आपको वहाँ देखकर अच्छा लगा।"संध्या खुश थी।"

"मैं तुमसे कल मिलता हूँ।" सुधीर ने कहते हुए फोन काट दिया।

"तो क्या उसने संध्या को देखा था? उसे श्रुति के होने का भ्रम क्यो हुआ।?" सोचते हुए सुधीर को नींद आ गई।

अगली सुबह जब वह अस्पताल पहुंचा, तब संध्या वाशरूम गई हुई थी। उसने बिस्तर पर देखा तो वहाँ एक लिफाफा पड़ा हुआ था जिसमें एक कागज़ था। उसने कागज़ खोल कर देखा तो चौक गया। वह श्रुति का पत्र था। उसने पढ़ना शुरू किया-

सुधीर।

"जब तक तुम्हें यह खत मिलेगा तब तक मैं बहुत दूर जा चुकी हूँगी। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि तुमने अपनी जिंदगी में आगे बढ़ चुके हो। जिस तरह तुम मुझसे दूर रहकर मेरे जीवन को जीते थे, उसी तरह मैं भी तुम्हारा जीवन आत्मसात करती थी। तुम्हारे प्यार की बदौलत ही तो मैं इतना जी पाई लेकिन कभी भी यह समझ नहीं सकी कि इस जिंदगी का मकसद क्या रह गया? मैं तुम्हारे जीवन की हर ख़ुशी में शामिल थी- तुम्हारी शादी से लेकर अब तक के जीवन में। फिर अब क्या था जो मैं जी रही थी।"

"फिर एक दिन पता चला कि तुम्हारी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया जिसमें संध्या बुरी तरह घायल हो गई और और उसे आँखों के ऑपरेशन के लिए किसी और की आँखों की जरूरत थी। तब मुझे मेरे जीवन का अर्थ समझ मे आया और तुमसे जुड़ने का रास्ता भी साफ दिख रहा था।

"और अब तो मैं तुम्हारे साथ ही हूँ। संध्या को इस बारे में, मेरे बारे मे कुछ नहीं पता है और तुम भी मत बताना। मैं तुम्हारे साथ होकर भी तुम्हारा अतीत हूँ और संध्या तुम्हारा वर्तमान।

उसकी ख़ुशियाँ अब तुम्हारी जिम्मेदारी है और मेरी अंतिम इच्छा भी।"

तुम्हारी श्रुति।

खत पढ़कर सुधीर की आँखें नम थी। संध्या बाहर निकल आई थी। सुधीर को देखते ही बोली-"आप आ गए। यह कोई आपके लिए छोड़ गए थे।"

सुधीर ने श्रुति की आँखें देखी जिनसे अब संध्या देख रही थी। अब उसे समझ मे आया कि श्रुति वहाँ कैसे आई थी।

"उसने सही कहा था कि हमारा प्यार एक मिसाल कायम करेगा।व ह साथ ही तो है। "सुधीर सोच रहा था।



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