प्यार की दो बातें - भाग ५
प्यार की दो बातें - भाग ५
उस शहर को वो बहुत अच्छी तरह से जानता था पर क्योंकि अब कई साल गुजर गए थे इसलिए शहर भी थोड़ा बदल गया था। एक दो जगह से पूछते पूछते आखिर वो वहां पहुँच ही गया जहाँ नेहा रहती थी। नेहा का घर एक संकरी गली में था। गाडी घर से कुछ दूरी पर लगाकर वो नेहा के घर के दरवाजे पर खड़ा हो गया। वो काफी देर ऐसे ही खड़ा रहा। उसकी दरवाजा खटखटाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। पुराना शर्मीला अंकित फिर से लौट आया था। पर फिर भी कुछ देर बार हिम्मत करके उसने दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खुला तो सामने उसकी नेहा खड़ी थी। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि वो अपनी नेहा को देख पा रहा है क्योंकि नेहा को उस दिन के बाद देखने की सारी उम्मीदें उसने छोड़ दीं थीं। पुराने अंकित की तरह वो कुछ नहीं बोल पाया और बस नेहा को देखता ही रह गया। नेहा भी अंकित को देखकर हतप्रभ सी हो गयी थी और कुछ भी नहीं बोल पाई थी। नेहा की मांग में सिन्दूर था और वो साड़ी पहने हुए थी। वो अपनी उम्र से कुछ बड़ी लग रही थी। शायद उसके लिए ये नौ दस वर्ष का समय एक पूरी जिंदगी के बराबर था। उसकी आँखें नम हो गयीं। कुछ आंसू भी नीचे टपक गए। अब भी दोनों आपस में बोल नहीं रहे थे बस आँखों से ही बातें कर रहे थे। नेहा उसे अंदर कमरे में ले गयी और अंकित एक सोफे पर बैठ गया। नेहा चाय लेने किचन में चली गयी।
इतने में एक आदमी कमरे में आया। अंकित समझ गया कि ये नेहा का पति है। नेहा चाय लेकर आ गयी और अपने पति को बताया कि अंकित उसका पुराण दोस्त है। नेहा के पति के अंदर जाने पर भी दोनों बस बैठे ही रहे आपस में कुछ नहीं बोल पाए। फिर अचानक अंकित उठा और बाहर की और चल दिया। नेहा ने भी न जाने क्यों उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की। जब नेहा के पति ने उससे पूछा की अंकित एक दम से क्यों चला गया तो नेहा ने कह दिया की उसका कोई जरूरी फ़ोन आया था।
घर आकर अंकित अपने कमरे में गया और खूब रोया। वो सोच रहा था कि वो अगर नेहा से कोई बात कर लेता तो शायद उसका मन थोड़ा हल्का हो जाता पर अंकित जैसा था वैसा ही था। नेहा के सामने न तो वह पहले कभी कोई बात कर पाता था और न अब। मन में ऐसे ही कुढ़ते कुढ़ते कई दिन बीत गए। एक दिन अंकित को किसी नंबर से फ़ोन आया। अंकित ने हेलो बोला पर दूसरी तरफ से कोई आवाज नहीं आई। उसने एक दो बार और हेलो कहा पर दूसरी तरफ़ से बस एक सिसकी की आवाज सुनाई दी। अंकित समझ गया कि ये नेहा है। वो भी एकदम चुप हो गया। दोनो दस मिनट तक ऐसे ही एक दूसरे की साँसों की आवाज़ सुनते रहे और फिर नेहा ने फ़ोन काट दिया।अंकित बहुत आधीर हो रहा था। उसके मन में तरह तरह के प्रशन उठ रहे थे कि नेहा ने क्यों फ़ोन किया होगा। कहीं वो किसी मुसीबत में तो नहीं है। पर वो दोबारा नेहा के पास जाना भी नहीं चाहता था। वो नहीं चाहता था कि उसकी वजह से नेहा की शादीशुदा ज़िंदगी में कोई परेशानी आए। इसी तरह सोचते सोचते उसने दो दिन गुज़र दिए। पर इससे वो और भी परेशान हो गया और फिर एक दिन गाड़ी निकालकर नेहा के घर पहुँच गया। उस दिन नेहा के पति ने दरवाज़ा खोला। नेहा कहीं बाहर गयी हुई थी। उसके पति ने बताया कि वो बस मार्केट तक गयी है और अभी आ जाएगी। दोनो वही कमरे में बेठकर बातें करने लगे। अंकित का सारा ध्यान दरवाजे पर ही लगा हुआ था। नेहा के पति की बातें वो ध्यान से सुन ही नहीं पा रहा था। पर बातों बातों में जब नेहा के पति ने बताया कि नेहा को ब्लड कैन्सर है तो अंकित एक दम से ठिठक गया। उसे इस बात पर यक़ीन ही नहीं हो रहा था। उसकी आँखें नम हो गयीं। उसने बड़ी मुश्किल से अपने आंसुओं को रोका पर वो अपने को नहीं रोक पाया और घर से बाहर की तरफ़ जाने लगा। जब वो दरवाज़ा के बाहर निकला तो सामने नेहा खड़ी थी। पर वो वहाँ रुक नहीं पाया और सीधा अपने घर चला गया। उस रात वो सो नहीं पाया और रोते रोते की रात बिता दी।
अगले दिन जब वो उठा तो उसने देखा कमरे में उसका दोस्त रघु बैठा हुआ है। नेहा और अंकित के प्यार के बारे में तो वो सब पहले से ही जानता था और ये भी जानता था कि नेहा की शादी हो चुकी है। वो अंकित को मिलने और समझाने के लिए ही आया था। दोनो घंटों बातें करते रहे। अंकित ने उसे नेहा को कैन्सर होने की बात भी बता दी। दोनो एक दूसरे का दुःख सुख बाँट रहे थे।
रघु ने उसे समझाया कि वो इतना बड़ा दिल का डॉक्टर है और इंग्लंड से पढ़ कर आया है तो क्यों ना किसी बड़े हस्पताल में नौकरी कर ले जिससे की वक़्त भी बीत जाए और थोड़ा मन भी हल्का हो जाए। अंकित को भी उसकी बात जंच गयी और उसने सोचा कि शायद ऐसे ही वो अपना ध्यान नेहा की तरफ़ से हटा सके और अगर मन ना लगा तो वो वापिस इंग्लंड चला जाएगा। कुछ दिन बाद उसे एक अच्छे हॉस्पिटल में नौकरी भी मिल गयी। अंकित के अच्छे स्वभाव के कारण हस्पताल के बाक़ी डॉक्टरों से भी उसकी अच्छी दोस्ती हो गयी थी।
एक दिन वो अपने कमरे से निकल रहा था कि उसे नेहा कैन्सर डिपार्टमेंट में बैठी दिखी। वो शायद इसी हॉस्पिटल में किसी कैन्सर स्पेशलिस्ट को दिखाने आई थी।
अंकित नेहा से तो नहीं मिला पर उसके जाने के बाद उसके डॉक्टर के पास चला गया। वो उसका काफ़ी अच्छा दोस्त था। अंकित ने बताया कि नेहा उसकी काफ़ी अच्छी दोस्त है और वो नेहा का केस डिस्कस करने लगा। नेहा के डॉक्टर ने बताया की नेहा को एंड स्टेज कैन्सर है और उसके पास बस एक महीने तक का ही वक़्त है। अंकित को दुःख तो हुआ पर उसे पता था कि वो अब नेहा के लिए वो ज़्यादा कुछ नहीं कर सकता। उसने उस दोस्त को कहा कि अगर किसी भी समय इलाज के लिए नेहा को पैसों की कमी पड रही हो तो वो दे देगा और ये बात नेहा को ना पता चले। और ये भी कहा कि अगर उसे लगे की नेहा का अंतिम समय आ गया है तो उस समय उसे ज़रूर बता दे।