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विस्तृत पृष्ठ

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सामने क्षितिज से लगकर चांदी की लहरें चमचमा रही थी। सांझ होने में कुछ समय शेष था लेकिन विस्तृत, चौतरफा फैले आकाश में पीले नारंगी रंगों की आमद हो चली थी। नदी के किनारे पर पसरी चट्टान पर बैठे गीति थी और सुमित कभी शब्दों से तो कभी आंखों से बतिया रहे थे। आज पता नहीं क्या बात थी कि गीति की शोखी कुछ पानी की तरलता सी शांत थी और सुमित उस शांत बैठी तितली को अपनी किसी आहट से उड़ाना नहीं चाह रहा था। आज ना प्रश्न थे और ना ही उत्तर ,जमीन पर पड़े किसी छोटे से पत्थर को सुमित अपने पैरों की उंगलियों से उठाकर नदी में दूर उछाल कर फेंक देता " छपाक !" की आवाज सिर्फ नदी में नहीं दोनों की आत्मा में भी होती और तरंगित लहरों सा कुछ दोनों के अंतस में दूर तक परत दर परत फैलता जाता।

कुछ ही समय पश्चात जब आसमान के कागज पर सांझ की स्याही बेतरतीब से फैलने लगी तो सुमित ने आवाज लगाई- "गीति !"

लगा आवाज गीति को नहीं उसकी आत्मा में सोई किसी चेतना को संबोधित कर रही थी। आवाज से गीति की तंद्रा भंग हुई उसने अपनी घनी बरौनीओं वाली आंखें ऊपर उठाएं और-

" हूं " प्रत्युत्तर दिया।

"चले या अभी कुछ और सोचोगी ?"

प्रश्न सुमित के नेह प्रस्ताव की स्वीकृति या अस्वीकृति के बारे में था। कुछ संभलते हुए गीति बोली-

"सुमित ऊपर देखते हो ? गीति का इशारा आसमान की तरफ था।

"यह जो आकाश है ना सुमित यह सिर्फ आकाश नहीं; एक फैला हुआ विस्तृत पृष्ठ है, नियति जिस पर तुम्हारे, हम सब के कर्मों का हिसाब अपने पाप पुण्य की लेखनी में भरी उचित अनुचित की स्याही से लिखती रहती है और फिर शब्द और अंकों में लिखी गई उस इबारत का जोड़ घटाना कर नियति हमें हमारे कर्मों का फल, दुख और सुखों के माध्यम से प्रेषित करती है। तुम्हारे साथ रहकर मैंने सिर्फ अपने लिए नहीं दूसरों के लिए भी जीना सीखा। तुमसे मैंने दूसरों का हर तरह से ध्यान रखना सीखा। तुम्हारे साथ जीवन की यात्रा पर चलना यानी मात्र तुम्हें बस पा जाना नहीं है बल्कि तुम्हारे साथ उन तमाम रिश्तो नातों और बंधनों के साथ भी चलना है जो तुम्हारे पैरों से बंधे हुए हैं।आज अगर मैं तुम्हारे नेह प्रस्ताव को अस्वीकृत करती हूं तो शायद मैं अपना जीवन बेहतर ढंग से बिता पाऊं लेकिन अगर प्रस्ताव स्वीकृत करती हूं तो अपना जीवन जो शायद अपेक्षाकृत कठिन हो लेकिन उसमें बसे परोपकार की खुशबू मुझे मेरे जीवन के सार्थक लक्ष्य की ओर ले जाएगी जिसमें मुझे मेरा जन्म सफलता और सार्थकता की कसौटी पर खरा उतरा जान पड़ेगा।" गीति की आवाज में प्रेम भरी स्निग्धता झिलमिलाने लगी।

"सुमित मैं तुम्हें तुम्हारी समस्त आत्मिक संपूर्णता के साथ स्वीकार करती हूं।"

ऊपर आसमान के कागज पर प्रसन्नता की स्याही से रंगे ढेर सारे लाल गुलाबी रंग छिटक रहे थे।


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