बसंत
बसंत
सखी आज बसंत आया
बसंत क्यों मनाया जाता है।
यह हमारे देश में अति पावन माना जाता है। बहुत ही प्राचीन सभ्यता रही है। इस दिवस पर पहले बच्चों की पट्टी और बुत का पूजा जाता था। यह मान्यताएं प्राचीनतम हैं। आज सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती हैं और बच्चों से आज माँ सरस्वती की पूजा अर्चना कराई जाती है।
और इसी के साथ बसंत ऋतु का आगमन भी होता है । प्रकृति अपने पूर्ण यौवन पर होती है। चारों ओर हरीतिमा की चादर बिछी होती है ।सरसों के फूलों की चुनरी ओढ़ धरा इठलाती- लहराती है।
यह दिन इतना पवित्र माना गया है कि बिना पंडित से पूछे ही लड़के, लड़कियों की शादी कर देते हैं। ये बहुत शुभ दिन माना जाता है।
प्रियतम और प्रेमिका का मिलन भी इसी मौसम की सुन्दरता को देख महकता है।
किसी प्रेमी के अंतर्मन में झाँक कर
देखना कितना सुन्दर लगता है।
एक गीत है,:--
आई बसंत बहार,
पड़े अँगना फुहार,
सैयां आके गले लग जा-
लग जा।
फूलों की क्यारियाँ खिलखिलाती हैं, प्रेमियों को आकर्षित करती हैं। चारों ओर खुशनुमा माहौल और मौसम भी।
सूर्य की स्वर्णिम किरणें देख लगता है जैसे सुनहरी भोर की चादर बिछी हो।
हल्की मध्यम धूप सुहावनी लगती है।
मन और शरीर को पुलकाती है, अंतर्मन को आल्हादित कर देती है। मन मयूर नाच उठता है। पागल कोयलिया भी राग गुनगुनाती है।
पपीहे का पीहू-पीहू मन को मोह लेता है उसके साथ गुनगुनाने को मन होने लगता है। स्वर से स्वर मिलाने को दिल करता है, यही तो है बसंत ऋतु की मादकता, जिसे देख प्रेमिका झूमने लगती है और अपनी यादों में खो जाती है।
झुरमुट से सूरज देव की किरणें झाँकती बड़ी मनमोहक लगती हैं। किसका मन विचलित न हो जायें। हर ओर खुशनुमा माहौल हो जाता है।ये समझ से परे है कि आखिर कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार। जो पूरा सामंजस्य बिठाता है कहीं कोई त्रुटि नज़र नहीं आती है।हर कोई आश्चर्यचकित हो जाता है। ऐसी है हमारे देश की धरती जो इन दिनों एक दुल्हन का रूप सँजोती है और उस पर गणतंत्र दिवस की खुशी भी सभी में समाहित हो जाती है।
हमारे देश के वीरों की गाथा शोभायमान होती है। ऐसे चारों ओर हँसीं- खुशी का रंग बिखेर देता है।
होली भी अपनी दस्तक दे देती है।
अपने सतरंगी सपने रंगो में बिखेर देती है।
इसीलिए बसंत ऋतु का आगमन हर तरह से खुशियाँ और उल्लास लेकर आता है। हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता बहुत ही प्राचीन और अनुकरणीय है जो और कहीं देखने को नहीं मिलती।
माँ सरस्वती को नमन

