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Prafulla Kumar Tripathi

Horror Tragedy Crime

4  

Prafulla Kumar Tripathi

Horror Tragedy Crime

सुलझेगी अब मर्डर मिस्ट्री !

सुलझेगी अब मर्डर मिस्ट्री !

5 mins
378


उसी सूबे की बात है।खेल और साहित्यिक मंच पर एक नहीं अनेक सितारे अपनी जगमगाहट बिखेरते चले जा रहे थे।उस सूबे से ही पधारे थे लोकप्रिय कवि बच्चन जी ।

दिल्ली के फिक्की भवन सभागार में खचाखच भरे हुए श्रोताओं के बीच डा.

हरिवंश राय बच्चन मधुशाला का नशा चढ़ाने के बाद अपनी एक और प्रसिद्ध कविता का सस्वर पाठ कर रहे थे...

" जीवन में एक सितारा था

माना वह बेहद प्यारा था

वह डूब गया तो डूब गया

अम्बर के आनन को देखो

कितने इसके तारे टूटे

कितने इसके प्यारे छूटे

जो छूट गए फिर कहाँ मिले

पर बोलो टूटे तारों पर

कब अम्बर शोक मनाता है

जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम

थे उसपर नित्य निछावर तुम

वह सूख गया तो सूख गया

मधुवन की छाती को देखो

सूखी कितनी इसकी कलियाँ

मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ

जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली

पर बोलो सूखे फूलों पर

कब मधुवन शोर मचाता है

जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था

तुमने तन मन दे डाला था

वह टूट गया तो टूट गया

मदिरालय का आँगन देखो

कितने प्याले हिल जाते हैं

गिर मिट्टी में मिल जाते हैं

जो गिरते हैं कब उठतें हैं

पर बोलो टूटे प्यालों पर

कब मदिरालय पछताता है

जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिटटी के हैं बने हुए

मधु घट फूटा ही करते हैं

लघु जीवन लेकर आए हैं

प्याले टूटा ही करते हैं

फिर भी मदिरालय के अन्दर

मधु के घट हैं मधु प्याले हैं

जो मादकता के मारे हैं

वे मधु लूटा ही करते हैं

वह कच्चा पीने वाला है

जिसकी ममता घट प्यालों पर

जो सच्चे मधु से जला हुआ

कब रोता है चिल्लाता है

जो बीत गई सो बात गई!

श्रोताओं की भीड़ में एक चेहरा नज़र आया..अरे ये तो अपने के.के.हैं !के.के.के तूफ़ान भरे जीवन में अब शांति पसरने लगी थी।

मुम्बई में कनिका खुश थी कि उसके पति प्रशांत के साथ हुई ना इंसाफ़ी करनेवालों की पहचान होगी ,उन पर मुक़दमा भी चल सकेगा और वे जेल के भीतर होंगे।

प्रोड्यूसर माही को इन दिनों ढेर सारे आफर मिले हुए हैं।बाहुबली और अलेक्जेंडर को लेकर वे ओ.टी.टी.पर एक सीरीज़ भी बना रहे हैं।

लेकिन सरदार नगर और गोरखपुर में सैयद की हत्या के चलते राख में दबी एक आग अब चिंगारी बनने लगी थी।सूबे में आजा़दी के बाद से ही जातिगत समीकरणों पर सरकारें बनती रहीं।उन दिनों में ठाकुरों की सरकार सत्ता में थी और यह भी संयोग कि गोरखपुर के बहादुर सिंह ही मुख्यमंत्री थे।मोदी के परिजनों ने वहां गुहार लगाई थी लेकिन ऊपर से दबाब के चलते बात नहीं बनी।इतिहास ने चुप्पी साध ली लेकिन कुछ ही दशकों के लिए। बड़े भाई  वकार हैदर ने सैयद मोदी हत्याकांड के बाद हुई पुलिस तफ़्तीश और अदालती कार्यवाहियों पर हालांकि अब मौन साध लिया था लेकिन वे इन सबसे संतुष्ट नहीं थे।वे क्या , गोरखपुर के तमाम युवा और जन प्रतिनिधि भी हतप्रभ और शोकाकुल हो उठे थे।गोरखपुर जिन अच्छी वज़हों से जाना जाने लगा था उनमें एक वज़ह सैयद मोदी भी तो थे ! इतनी कम उम्र में भला कौन अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आ पायेगा ?

1980 से 1987 के बीच हर साल राष्ट्रीय खिताब जीतने वाले सैयद मोदी सबसे कम उम्र में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित हुए थे।लेकिन आप भी तो जानते ही हैं उनके इस शानदार कैरियर का अप्रत्याशित अंत काफी दुखद ढंग से हो गया था । 28 जुलाई 1988 को लखनऊ में के.डी. सिंह बाबू स्टेडियम के बाहर उनकी गोली मार कर जान ले ली गई थी ..यह घटना दिल को दहला देनेवाली थी।एक ओर इस मध्यमवर्गीय परिवार पर ही आफ़त का पहाड़ टूट पड़ा था तो दूसरी तरफ़ इनके लिए क्षोभ का सबब अमिता भी थीं जो किसी नागिन की तरह माया रचकर उनके लाल को निगल गई थी।निगल ही नहीं गई थीं..बेदाग़ और बेकसूर भी हो चली थीं।

उनके जाने के बाद परिवार के बच्चे इस महान खिलाड़ी की विरासत को आगे ले जाने की कोशिशों में लगे रहें हैं और उनके बेबस परिजन क्षोभ और घुटन ही नहीं कुछ न कर पाने की छटपटाहट भी झेल रहे थे।

लेकिन समय ने भी एक अप्रत्याशित करवट ले लिया ।

लगभग दो दशक बाद महाराष्ट्र के प्रशांत सुसाइड केस में अदालत के ऐतिहासिक फैसले ने मोदी के परिजनों को राह दिखाई और एक और ख़ास बात यह हुई कि उस पुरानी पार्टी का सत्ता पर काबिज रहने का वर्चस्व भी लगभग समाप्त हो गया।केन्द्र और उ.प्र. सहित अनेक राज्यों में  सत्ता संभाल रही पार्टी की कमान से एक बार फिर गोरखपुर का नाता जुड़ा और सोने पर सुहागे संयोग यह कि सूबे के खेलमंत्री एक मुस्लिम बने।

उनको मोदी के जन्मदिन पर गोरखपुर के मोदी स्टेडियम में चल रहे समारोह का मुख्य अतिथि बनाया गया है।समारोह में मोदी का एक बड़ा भोला चित्र सभी की आंखें नम कर जा रहा है।

"आज इस धरती पर आकर मुझे बेइंतहा खुशी है।मोदी जैसे खिलाड़ी कभी भी मरते नहीं हैं..वे हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहते हैं।"खेलमंत्री अपना सम्बोधन कर ही रहे थे कि विश्वविद्यालय छात्रों का एक दल मंच की ओर बढ़ा।

मंच पर अफरातफरी मच गई और कमांडोज़ ने खेलमंत्री को घेर लिया।

छात्रों की मांग थी कि सैयद मोदी हत्याकांड की नये सिरे से जांच की जाय और उसमें सीधे या पर्दे के पीछे सम्मिलित हत्यारों को सज़ा दिलाई जाय।छात्रों का दबाब बढ़ता ही जा रहा था और पुलिस असहाय थी।मुख्यमंत्री का शहर होने के नाते वे छात्रों पर बल प्रयोग करने से बच रहे थे क्योंकि उन्हें वह दौर भी याद है जब इन्हीं छात्रों के आंदोलन की अगुवाई वर्तमान मुख्यमंत्री ने भी किया था।...यहां तक कि उनको हफ्तों हाउस अरेस्ट तक होना पड़ा था।

अचानक माहौल अजीब हो गया था..शायद स्थानीय प्रशासन को भी यह उम्मीद नहीं थी कि किसी के मरने के दशकों बाद भी उसके चाहनेवालों का जु़नून इस कदर हावी हो जायेगा कि वे मरने - मारने पर उतारु हो जायेंगे।

पुलिस कमिश्नर लखनऊ से हाट लाइन पर थे और उधर खेलमंत्री भी।सचिवालय से उन्हें कुछ गोपनीय निर्देश मिल गया है।

आनन फानन में एक बार फिर स्टेज पर माइक गूंज उठा;माइक खेल मंत्री ने संभाला था...

" साथियों , अभी अभी लखनऊ से निर्देश मिला है कि हमारी सरकार वर्ष   1988 के मोदी हत्याकांड की फिर से जांच करेगी और दोषियों को सख्त से सख़्त सज़ा दिलाकर रहेगी।"

परिसर में तालियों की ऐसी गड़गडाहट हुई मानो आसमान गिरकर ज़मीन पर आ जायेगा।

गोरखपुर अब आश्वस्त हो चला है कि उसके होनहार युवा खिलाड़ी मोदी की मर्डर मिस्ट्री अब तो सुलझ कर ही रहेगी ...जो बीत गई सो बात नहीं जाने पायेगी !अब तो वह बात दूर तलक जाएगी ...ज़रूर जाएगी !


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