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वेदना

वेदना

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“रामू, जा..फिर से स्टूल उठाकर ले आ।”

दीपक बाबू ने जब अपने नौकर को आदेश देते हुए कहा तो स्टूल सावधान हो उठी।

“मालिक, अभी कुछ ही देर पहले तो लाया था.. उसी पर चढ़कर सभी पंखों की सफाई की थी।” सुनकर उसे अच्छा लगा।

“पंखा तो साफ़ हो गया..पर, अभी भी बरामदे के कोने में जाला लटक रहा है।” स्टूल को मालूम था कि उसे फिर जाना पड़ेगा।

“जी, मालिक..अभी लाया।”

रामू स्टूल को उठा लाया और जाला साफ़ करने लगा। सफाई खत्म करते ही रामू ने स्टूल को यथास्थान ले जाकर पटक दिया।

स्टूल जोर से कराह उठा, “अरे...आराम से रख नहीं सकते ...मैं, तुम्हारे बूढ़े मालिक के उम्र का हूँ ! आज के लोग उम्र का भी लिहाज नहीं रखते। हद हो गई, औकात देखकर ही खोज खबर लेते हैं ! घर के बाकी फर्नीचर को हमेशा बच्चों की तरह नित्य देखभाल होती रहती है और मैं परित्यक्ता की तरह कोने से देखता रहता हूँ।

तभी बूढ़े मालिक को लाठी के सहारे रास्ता टटोलते.... इधर आते देख, अपनी वेदना को तत्क्षण भूल, मैं बूढ़े मालिक के डगमगाते कदम को एकटक निहारने लगा। फिर अपने चारों पाए पर जोर डाला, भगवान का लाख शुक्र है कि... वह अभी डगमगा नहीं रहा है।


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