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mohammed urooj khan khan

Tragedy

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mohammed urooj khan khan

Tragedy

महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि

20 mins
313

एक धुंधली सी तस्वीर मानो एक मंदिर है जो की लोगो से चकाचक भरा हुआ है, मंदिर में बज रही तेज तेज घंटिया चारों और के वातावरण में ध्वनि उत्पन्न कर रही हो, मंदिर के अंदर विराजमान शिवलिंग पर दूध और पुष्पों की वर्षा हो रही हो।

शिवालय भक्तो से भरा हुआ था, चारों और दुकाने ही दुकाने, मानो  महाशिवरात्रि का मेला लगा हुआ हो उसी बीच एक बच्चा जो की किसी औरत का हाथ थामे मंदिर की सीड़ियों से नीचे उतर रहा हो, उसके पास खड़ा एक आदमी जो हाथ में पूजा की थाली पकड़े हुए था। और वो लोग उस मेले में लगी एक दुकान की और बढ़े जहाँ एक आदमी एक छोटी सी मशीन लिए बेटा था हाथ पर नाम लिखने की, वो बच्चा जिद करता है, अपना नाम अपनी कलाई पर गुदवाने की, बहुत ज़िद्द के बाद वो औरत हामी भर्ती है और वो बच्चा ख़ुशी अपना हाथ उस आदमी के हाथ में दे देता है, अभी आधा ही नाम लिखा था 

कि एक जोर दार धमाका हुआ, जिसके बाद मानो चारों और भगदड़ ही भगदड़ मच गयी हो, वो बच्चा जो अब तक एक महिला का हाथ थामे हुए था, वो हाथ अब लोगो की भीड़ की वजह से छूटने को था, जो माहौल कुछ देर पहले खुशहाल था, चारों और मेले में रौनक लगी हुयी थी अब वो रौनक एक धमाके के बाद भगदड़ में तब्दील हो गयी थी

वो बच्चा जिसका हाथ उस औरत के हाथ से छूट चुका था, और वो बहुत पीछे खड़ा चिल्ला रहा था, माँ,, माँ,,, कहा जा रही हो,,, मैं पीछे रह गया हूँ,,, मुझे छोड़ कर मत जाओ,,, मत जाओ,,, मैं यहां हूँ

 एक ज़ोरदार चीख के साथ शिव अपने बिस्तर से उठा और 

उठते ही उसने खुद को पसीने में भीगा हुआ पाया, उसकी चीख सुन उसकी माँ सुनैना दौड़ी चली आयी

"क्या हुआ बेटा? कोई बुरा ख्वाब देखा क्या तुमने? "सुनैना जी ने अपने पल्लू से उसका पसीना साफ करते हुए पूछा

"नहीं पता माँ, वो सपना था या हकीकत, बस इतना समझ सकता हूँ, कि पिछले कुछ दिनों से ये सपना मुझे मुसलसल दिखाई दे रहा है, मानो वो सपना नहीं एक तरह कि हकीकत हो जो मुझसे रूबरू होना चाहती है " शिव ने कहा

"नहीं बेटा, लगता है तुम पढ़ाई को लेकर चिंतित हो इस वजह से इस तरह के सपने दिख रहे है, तुम परेशान न हो मैं आज ही जाकर पंडित जी से कोई मंत्रो से जड़ा कालावा ले आउंगी, फिर तुम्हे ये ख्वाब आना बंद हो जाएंगे " सुनैना जी ने कहा

"नहीं माँ, मुझे नहीं लगता कि ये कोई मामूली ख्वाब है, कुछ तो है जो मुझे मेरे अतीत से मिलाना चाहता है, एक मंदिर, शिवालय भक्तो से भरा हुआ, एक औरत जिसका हाथ एक दस या बारह साल का बच्चा थामे हुए था, अचानक वो दुकान जहाँ वो अपनी कलाई पर कुछ लिख वा रहा था और अचानक हुयी भगदड़ में उसका नाम अधूरा ही रह गया।

और देखो माँ, मेरे नाम इस शिवा के आगे भी कुछ है, जो कि लिखने से छूट गया हो, कही न कही वो बच्चा मैं तो नहीं, कही मेरा कोई पुनर्जन्म तो नहीं " शिव ने कहा

"हट पागल कही का, तुझे कितनी बार मैंने इस तेरे नाम के आगे लिखें इस अधूरे शब्द कि कहानी बताई है, कि किस तरह उसने तेरा नाम शिव से शिवम सुन लिया था, जिसके चलते ही उसने ये शब्द अधूरा छोड़ दिया था जब मैंने उसे तेरा नाम शिव बताया था " सुनैना जी ने कहा

"ठीक है माँ, तुम कहती हो तो मान लेता हूँ, लेकिन हाँ आज तुम्हे मेरी भी बात मानना पड़ेगी " शिव ने कहा

"क्या बात है? कौन सी बात मानना है मुझे तेरी?" सुनैना जी ने कहा

"यही माँ, की आज मैं महा शिवरात्रि के लिए अपने दोस्तों के साथ अटरिया मेले जाऊंगा, और तुम मुझे हर साल की तरह रोकेगी नहीं, क्यूंकि अब न मैं बच्चा हूँ और न ही कही खो सकता हूँ " शिव ने कहा

अटरिया मेले की बात सुन, मानो सुनैना जी को कुछ हो गया और वो वहाँ से उठ खड़ी हुयी और बोली " नहीं,, तू मुझसे कही और जाने की इजाजत मांग ले लेकिन मैं तुझे अटरिया मेले जाने की इजाजत नहीं दूँगी, भले ही तू 18 बरस का हो गया है, लेकिन मेरे लिए तू आज भी बच्चा है, वहाँ बहुत भीड़ होती है, कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता है "

"नहीं अब मैं तेरी एक भी बात नहीं सुनूगा, मुझे मेरे दोस्त बहुत चिढ़ाते है, वो हर साल अटरिया मेले जाते है महाशिवरात्रि के दिन और मैं उन्हें जाते देखता रहता हूँ, लेकिन अब नहीं, अब मैं जाऊंगा " शिव ने कहा

"बेटा भगवान तो हर जगह बसते है, फिर क्या अटरिया और क्या अपने इस गांव का शिव मंदिर दोनों में ही तो शिव का वास है, और यहां भी तो कितना बड़ा मेला लगता है, दूर दूर से लोग आते है," सुनैना जी ने कहा

"नहीं माँ मुझे कुछ नहीं सुनना, मैं आपसे इजाजत नहीं मांग रहा हूँ, अपना फैसला सुना रहा हूँ, तुम मुझे मेरे कपड़े स्त्री करके दे दो बाकी मैं देख लूँगा, अब मैं तुम्हारी एक भी नहीं सुनूगा, और हाँ मेरे पास पैसे है कल दुकान पर अच्छी बिक्री हुयी थी जिसके चलते पिता जी ने कुछ पैसे मुझे भी दिए थे " शिव ने कहा

सुनैना जी और कुछ कहती तब ही उनके पति सोमनाथ जी वहाँ आये और बोले " जाने दो इसे! कब तक यूं ही अपने पल्लू से बांधे रखोगी "

"आप भी " सुनैना जी ने कहा

"हाँ मैं भी, लेकिन सिर्फ तुम नहीं इस बार हम भी शिवरात्रि का उत्स्व अटरिया जाकर ही मनाएंगे " सोमनाथ जी ने कहा

"सच,, ये तो बहुत अच्छा होगा पापा, मैं बस अभी नहा कर आता हूँ, फिर साथ चलेंगे , जल्द ही निकलेंगे तब जल्दी पहुंचेंगे मेरे दोस्त बता रहे थे इस गांव से बहुत दूर है, काफी समय लगता है वहाँ पहुंचने में "शिव ने कहा और जल्दी से तौलिया लेकर नहाने चला जाता है

सुनैना जी, सोमनाथ जी का हाथ पकड़ कर बाहर की तरफ खींच कर लाती है और कहती है " ये क्या किया आपने? मैं उसे वहाँ जाने से रोक रही थी और आपने तो हम सब को वहाँ ले जाने की बात कर दी, क्या चल रहा है आपके दिमाग़ में, आप सब कुछ जानते है, उसके बाद भी,,, मुझे आपसे ये उम्मीद नहीं थी "

"देखिये, भाग्यवान,, शिव अब बच्चा नहीं रहा, जिसे यूं बेहला फुसला कर आप या मैं उसे कही भी जाने से रोक लेंगे, वो अब बड़ा हो गया है, उसे इस तरह कही आने जाने से रोकना उसे हमसे दूर कर देगा,, और अब तो उसे ख्वाब भी आने लगे है,,जो इस तरफ इशारा कर रहे है, कि वो अपने अतीत कि और लोट रहा है " सोमनाथ जी ने कहा

"नहीं,, उसे कुछ ऐसा याद नहीं आ रहा है, लेकिन अगर वो अटारी मेले गया तो उसे सब याद आ जाएगा, जो कि हम दोनों के लिए अच्छा संकेत नहीं होगा " सुनैना जी ने कहा

"मैंने सब सुना, जो भी उसने सपने में देखा था, भले ही उसके लिए वो सपना होगा जबकी मैं और आप जानते है, कि वो सपने के रूप में हकीकत देख रहा है, और हकीकत को झूठलाना न मेरे बस में है और न ही आपके इसलिए ज्यादा परेशान न हो जाकर तैयार हो जाइये आज बरसो बाद हम लोग एक बार फिर वही उसी जगह जा रहे है, जहाँ बरसों पहले गए थे, जब भी महाशिवरात्रि थी और आज भी बस ईश्वर से यही प्रार्थना है कि इस बार कुछ ऐसा न हो जैसा कि जब हुआ था " सोमनाथ जी ने कहा

सुनैना जी भी तैयार होकर शिव और सोमनाथ जी के साथ अटारी मेले में जाने को तैयार थी, लेकिन कही न कही उन्हें एक डर सता रहा था और वो था बरसो पहले हुआ हादसा

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"भाभी ये केसी जिद्द है, क्यूँ जाना है आपको अटरिया के मेले? आप जानती तो हो हर साल आप वहाँ जाने के बाद खुद को संभाल नहीं पाती हो, और पागलों की तरह मंदिर में आये श्रद्धांलुओं से अपने बेटे के बारे में पूछती रहती हो

भाभी, उस दिन भैया के साथ साथ हमारा शिवम् भी इस दुनिया से चला गया था, आपको इस बात पर यकीन क्यूँ नहीं आता, क्यूँ आप पिछले दस साल से मुसलसल अपने बेटे के वियोग में रो रही है, अब तो आपके आंसू भी सूख गए है, मान क्यूँ नहीं लेती की उस दिन उस हादसे का शिकार सिर्फ भैया ही नहीं बल्कि शिवम भी हो गया था " घर के मंदिर में बैठी मनोरमा से पास खडे उसके छोटे देवर सुभाष ने कहा

"नहीं,, मेरा दिल नहीं मानता है,, कि उस दिन इनके साथ साथ मेरा शिवम भी मुझे छोड़ कर चला गया था, भगवान इतने निर्दयी नहीं हो सकते कि एक औरत से उसका सुहाग और उसकी औलाद एक साथ छीन ले, अभी तो सिर्फ दस साल का ही अरसा गुज़रा है, मेरी आख़री सास जब तक मेरे शरीर में रहेगी जब तक मैं अपने बेटे से मिलने कि आस नहीं छोडूंगी,

मुझे उम्मीद है, कि मेरा बेटा एक दिन जरूर मिल जाएगा, ये एक माँ के दिल की आवाज़ है, मैं महसूस कर सकती हूँ कि मेरा बेटा जहाँ कही भी है, सुरक्षित है और एक दिन वो मेरे पास जरूर आएगा फिर चाहे दस बरस गुज़र जाए या बीस बरस ये एक माँ अपने बेटे से मिलने की आस नहीं छोड़ेगी, जिस तरह दस साले पहले उस शिवरात्रि वाले दिन मेरा बेटा और मेरा सुहाग मुझसे दूर हुआ था मुझे उम्मीद है ऐसे ही किसी न किसी शिवरात्रि पर वो मुझे जरूर मिलेगा

भगवान इतने निर्दयी नहीं हो सकते, उन्हें इस माँ की फरियाद सुनना ही होगी इसे इसका बेटा लोटाना ही होगा, इन्ही के दरबार में मैंने उसे खोया था देखना इन्ही के दरबार में मैं उसे दोबारा मिलूंगी मेरा दिल कह रहा है बस कुछ पल और, और मेरा बेटा मेरे पास होगा,, मैं जा रही हूँ,, " मनोरमा जी ने कहा और हाथ में पूजा की थाली लिए बाहर गाड़ी की तरफ चलने लगी

"जाकर रोकिये भाभी को, जानते तो है आप, उनकी तबीयत ठीक नहीं है, बेटे और पति की जुदाई ने उन्हें दीवाना बना दिया है " सुभाष की पत्नि शांति ने कहा

"पिछले दस सालों से रोकने की कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन आज तक नहीं रोक पाया तो आज क्या रोक पाउँगा, पता नहीं ईश्वर भी कौन सी परीक्षा ले रहा है एक माँ की,

मैं जा रहा हूँ भाभी के साथ, तुम घर पर ही रहना पिछली साल भी उनकी बहुत बुरी हालत हो गयी थी, मंदिर जाकर कही इस बार भी कुछ ऐसा वैसा न हो जाए, इसलिये मैं जा रहा हूँ, भईया की अमानत है वो, उन्हें इस तरह दर बदर भटकता तो नहीं छोड़ सकता " सुभाष ने कहा और जाकर गाड़ी में बैठ गया, मनोरमा जी ने मना किया उसे आने से लेकिन वो नहीं माना

वही दूसरी तरह शिव अपने माता पिता के साथ अटारी मेले पहुंच चुका था, शिवालय भक्तो से भरा हुआ था, चारों और घंटियों के बजने की आवाज़ सुनाई दे रही थी, मंदिर के पास लगी दुकानों पर लोगो की भीड़ लगी हुयी थी, बेलपत्र, बेर, दूध, फूल, पूजा की तरह तरह की सामग्री की दुकानों पर लोगो की भीड़ लगी हुयी थी

आस पास बच्चों के लिए खिलोनो और झूले लगे हुए थे, शिव भक्त पूर्ण निष्ठा के साथ शिवलिंग पर दूध और जल अर्पित कर रहे थे

शिव और उसके माता पिता ने भी जल्द से जल्द मंदिर पहुंच कर पूजा अर्चना करने की कोशिश की लेकिन भीड़ इतनी थी की वहाँ जल्दी नंबर आना मुमकिन ही नहीं था

इसी बीच सुभाष और मनोरमा जी भी गाड़ी से उतर गए, मनोरमा जी के सामने वही दस साल पहले का दृश्य चलचित्र होने लगा और उनके मूंह से निकल गया " शिवम! कहा हो तुम, देखो तुम्हारी माँ आयी है "

शिव जो की लाइन में लगा हुआ था, उसे ऐसा लगा मानो किसी ने उसे पुकारा हो, उसने पीछे मुड़कर देखा तो बस भीड़ के और कुछ न था

आखिर कार घंटो की माशाक्कत के बाद वो मंदिर के अंदर प्रवेश कर गए, जहाँ पूर्ण विधि विधान के साथ उन्होंने पूजा अर्चना की जैसे ही वो वापस लौटने को हुए एक जगह कुछ लोगो की भीड़ एकत्रित हो गयी

"क्या हुआ है, पंडित जी?" शिव ने पूछा

"कुछ नहीं बेटा, बस एक पागल सी औरत है, राह चलते बच्चों को पकड़ कर उन्हें अपना बेटा समझ बैठती है " पंडित जी ने कहा

"लेकिन क्यूँ पंडित जी, वो ऐसा क्यूँ करती है?" सोमनाथ जी ने पूछा

"नहीं मालूम मैं तो कुछ साल पहले ही यहां आया हूँ, लेकिन यहां रहने वाले कुछ लोगो ने बताया था, की आज से करीब दस साल पहले ऐसे ही एक महाशिवरात्रि के अवसर पर जब चारों भक्तो का ताँता लगा हुआ था, लोग मेले का आंनद ले रहे थे, तब अचानक एक चाट पकोड़ी वाले की दुकान में सिलेंडर फट गया था, जिसके चलते भगदड़ मच गयी थी, जिसमे हज़ारो लोग मौत की नींद सौ गए थे, और जो बचे थे वो कही गुम हो गए थे, उन्ही में से उस एक औरत का भी एक बच्चा खो गया था, जिसे ढूंढ़ने वो हर साल यहां महाशिवरात्रि पर आती है, भोलेनाथ जाने उसका बच्चा जिन्दा भी है या मर गया, लेकिन माँ है न कैसे मान ले की उसका बच्चा मर गया है, तब से लेकर अब तक बेचारी अपने बच्चें को ढूंढ रही है " पंडित जी ने कहा और प्रसाद देकर चले गए 

भगदड़ का नाम सुन कर शिव को कुछ कुछ याद सा आने लगा था, और वो उस औरत की तरफ दौड़ा लेकिन तब ही सुनैना जी ने पीछे से उसे आवाज़ लगायी " रुको बेटा! कहा जा रहे हो,पूजा हो गयी हमें शाम से पहले घर भी पहुंचना है, इस तरह यहां वहाँ मत जाओ, बेवजह गुम हो जाओगे फिर हम तुम्हे कहा तालाशेंगे "

अपनी माँ की बात सुन शिव वही रुक जाता है, और अपनी माँ और पिता के साथ मंदिर की सीड़ियों से उतरने लगता है, लेकिन उसकी नज़रे अभी भी वही उसी तरफ थी जहाँ वो औरत को कुछ लोग घेरे बैठे थे

सीड़ियों से उतरते समय सामने उसे कुछ दिखाई दिया और वो दौड़ता हुआ वहाँ जा पंहुचा

"क्या हुआ बेटा? अपना नाम लिखवाना है या अपनी प्रेमिका का " नाम गोदने वाले ने कहा

शिव खामोश खड़ा था, उसे वही सपना याद आने लगा था की एक बच्चा जो अपना नाम लिखवा रहा था और तब ही भगदड़ मच गयी थी

"क्या बात है भैया? कुछ याद कर रहे हो " नाम गोदने वाले ने कहा

नहीं नहीं बस यूँही, कुछ याद आ गया था, दरअसल मेरे हाथ पर भी मेरा नाम लिखा है, ये कहते हुए शिव ने अपना हाथ दिखाया, जिसे देख गोदने वाले ने कहा " अरे! ऐसा मालूम पड़ रहा है, कि ये कुछ अधूरा नाम है, जहाँ तक मालूम पड़ रहा है, लिखने वाला शिवम् लिखना चाह रहा था, पर आधा ही लिख पाया, जल्दी में थे क्या भाई या फिर किसी भगदड़ का शिकार हो गए थे, ऐसे अधूरे नाम अक्सर इसी तरह की आपातकालीन स्थिति में छूट जाते है

पीछे ख़डी सुनैना जी और सोमनाथ जी उनकी बाते सुन रहे थे

"आप कुछ करते क्यूँ नहीं, कही शिव को सब पता चल गया तो, कही उसे सच में यकीन हो गया की वो जो ख्वाब देखता है, वो कोई ख्वाब नहीं बल्कि हकीकत है, तब क्या होगा, जाइये और रोक लीजिये उसे इससे पहले की वो सच जाने और हमसे नफ़रत करने लगे " सुनैना जी ने कहा

"अब नफरत करे या प्यार दोनों में हम ही दोषी है, हमें इसे सच बता देना चाहिए था, हमें वो सब नहीं करना चाहिए था जो हमने अनजाने में कर दिया था, उस भगदड़ का शिकार हुए इसके माता पिता को हमें ढूंढना चाहिए था, इसके परिजनों तक हमें पहुँचाना चाहिए था, एक कोशिश तो करना चाहिए थी, हमने खुद से ही अंदाजा लगा लिया था की और लोगो की तरह इसके माता पिता भी मर गए होंगे और अगर उसकी माँ या पिता कोई भी ज़िंदा होगा और उसी औरत की तरह तङप रहा होगा जो की ऊपर मंदिर में अपने बेटे के लिए तङप रही थी, तब भोलेनाथ हमें कभी माफ नहीं करेंगे, हमने एक माँ से उसके बच्चें को इतने साल दूर रखा, अब भी समय है हमें उसे सच बता देना चाहिए, शायद उसकी माँ या पिता ज़िंदा हो और ढूंढ़ने से मिल जाए क्यूंकि कहते है ढूंढ़ने से तो खुदा भी मिल जाता है तो फिर इंसान क्या चीज है " सोमनाथ जी ने कहा

"नहीं, नहीं,, मैं ऐसा हरगिज़ नहीं करूंगी, मैंने इसे भगवान के द्वारा अर्पित किए प्रसाद की भांति पाल पोस कर बड़ा किया है, मैंने अपनी सारी मामता इस पर न्योछावर कर दी है, माँ बनने का एहसास मेरे अंदर इसने ही जगाया है, वरना मुझ बाँझ को ये सुख कहा मिलने वाला था, ये राज ही रहेगा की शिव हमारा बेटा नहीं बल्कि दस पहले उस हादसे का शिकार हुए अपने माता पिता का बेटा है जिन्होंने हमारी दुकान से पूजा की थाली लीं थी, मुझे तो एक नजर में ही शिव भा गया था जब ये अपनी माँ के साथ हमारी दुकान पर आया था, और फिर मुझे उस हालत में मिला जिस हालत में अगर इसे इसकी सगी माँ देखती तो शायद दम तोड़ देती, कितना घायल था ये, इसके जख्मो को मैंने भरा है और जब होश में आया और इसने मुझे माँ कहकर पुकारा तब मेरे कलेजे को जो ठंडक मिली थी उसका एहसास शायद आप को कभी नहीं हो पायेगा, इसलिए आपको भगवान का वास्ता इस राज को राज ही रहने दीजिये और अब चलिए यहां से क्यूंकि जितनी देर यहां रहेंगे उतनी ही देर हम अपनी ही नज़रो में गुनेहगार साबित होते रहेंगे " सुनैना जी ने कहा अपने पाती के सामने हाथ जोड़ते हुए

"ठीक है, लेकिन देखना सच एक दिन स्वयं सबके सामने आ जाएगा, अगर इसकी माँ ज़िंदा है और वो इससे मिलने के लिए तङप रही है, तब माँ और बेटे के मिलन को होने से तुम या मैं नहीं रोक सकते जिस प्रकार माता पार्वती का अपने पुत्र गणेश के प्रति वियोग देख सारी सृष्टि उथल पुथल हो गयी थी अपने पिता के हाथो उनके शस्त्र से पराजित होने के बाद, और जब तक उनका पुत्र जीवित नहीं हो गया था तब तक सारी सृष्टि थम सी गयी थी, सब को माँ और पुत्र के दोबारा मिलन की आस थी और जो की होकर रहा था

इसलिए इन माँ और बेटे के मिलन की ज़िम्मेदारी भी स्वयं भगवान के हाथो है, क्यूंकि उन्ही के दरबार में ये दोनों अलग हुए थे " सोमनाथ जी ने कहा

"मुझे नहीं पता, मैं भी एक माँ हूँ भले ही शिव को कोख से नहीं जन्मा लेकिन मेरे लिए उसकी मामता सगी माँ से भी बढकर है, भगवान अन्याय नहीं कर सकते एक माँ से उसका बेटा छीन कर दूसरी माँ को नहीं दे सकते है, आप चलिए यहां से मुझे घबराहट हो रही है " सुनैना जी ने कहा और सोमनाथ जी का हाथ पकड़ कर वहाँ से जाने लगी

"माँ अभी थोड़ा और रुकते है, अभी तो मेरे दोस्त भी यही है " शिव ने कहा

"नहीं, बस बहुत हुआ, बाकी घर जाकर कर लेंगे," सुनैना जी ने कहा और शिव का हाथ पकड़ कर ले जाने लगी

सोमनाथ जी भी उनके पीछे पीछे चल रहे थे।

तब ही अचानक कुछ ऐसा हुआ एक घोड़ा जो की अपना संतुलन खो बैठा था, पूरे मेले में उपस्थित लोगो को घायल कर रहा था, जिसके चलते लोगो में हल्की फुलकी भगदड़ मच गयी थी

सब लोग भागने लगे थे, सुनैना जी, सोमनाथ जी और शिव भी वहाँ से जाने लगा था, तब ही शिव की नजर एक तरफ पड़ी जहाँ एक औरत बैठी थी, और पीछे से वही घोड़ा उसकी तरफ बढ़ रहा था, वो अपने होशो हवास में नहीं थी, इससे पहले घोड़ा उसे नुकसान पंहुचाता

उसने जाकर उन्हें बचा लिया

सुनैना जी और सोमनाथ जी का दिल बाहर आ गया था, अपने बेटे को इस तरह मौत के मूंह में जाता देख लेकिन वो बच गया था

"भाभी आप कहा चली गयी थी, मैंने आपको कहा कहा नहीं ढूंढा, तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया बेटा, तुमने मेरी भाभी की जान बचा लीं उस घोड़े से वरना न जाने क्या हो जाता?" सुभाष जी ने कहा

"नहीं नहीं शुक्रिआ न करे, ये तो मेरा फर्ज़ था, आप ठीक तो है " शिव ने पूछा

एक जोरदार थप्पड़ शिव के गाल पर पड़ा और एक आवाज़ उसे सुनाई पड़ी " खुद को हीरो समझता है, क्या जरूरत थी घोड़े के सामने आने की तुझे कुछ हो जाता तो "

"कुछ हुआ तो नहीं माँ, तुम तो कुछ ज्यादा ही परेशान हो रही हो, तुमने ही तो सिखाया था दूसरों की मदद करना, वही तो कर रहा था, अभी अगर मैं इन्हे नहीं हटाता तो वो घोड़ा इनपर चढ़ जाता " शिव ने कहा

"क्या आप भी? सही काम तो किया है हमारे बेटे ने,"सोमनाथ जी ने कहा

"नहीं,, नहीं माँ के दिल का हाल मैं समझ सकती हूँ, कोई भी माँ नहीं चाहेगी की उसका बेटा दूसरों के खातिर अपनी जान पर खेल जाए, तुम एक बहादुर लड़के हो, तुम्हे ईश्वर लम्बी उम्र दे " मनोरमा जी ने कहा जिनकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी, चेहरे और कपड़ो पर धूल लग गयी थी

"शुक्रिया, माँ जी " शिव ने कहा

अपने आप को इतने सालों बाद किसी से माँ शब्द सुन मनोरमा जी की मामता जाग गयी वो शिव को गले लगाना चाहती थी, पर किस हक़ से लगाती इसलिए उन्होंने उसे अपना आशीर्वाद देते हुए उसके सर पर हाथ रखा तब ही उनकी नजर शिव के हाथ से निकल रहे खून पर पड़ी जो शायद उन्हें बचाने में घायल हो गया था

उन्होंने तुरंत उसका हाथ अपने हाथ में लिया, और अपनी साड़ी के पल्लू से उसका खून साफ करने लगी तब ही उनकी नज़र उस अधूरे नाम पर पड़ी जिसके बाद मानो एक उम्मीद उनके मन में जागी हो, उनका दिल कह रहा हो की यही उनका बेटा शिवम है जो दस साल पहले उनसे बिछड़ गया था

मनोरमा जी ने उससे उस अधूरे नाम के बारे में पूछा जिसे सुनते ही सुनैना जी को शक हो गया जिसके बाद वो उसे वहाँ से ले जाना चाहती थी लेकिन तब ही सोमनाथ जी ने जो कहा उसे सुन सब खडे के खडे रह गए, क्यूंकि वो जान चुके थे कि कही न कही शिव और इस औरत का कोई रिश्ता है, क्यूंकि जिस तरह वो उस अधूरे नाम को देख रही थी उसे देख यही लग रहा था कि उनका इस अधूरे नाम से कुछ रिश्ता है और वो इसी बात को सिद्ध करने के लिए बोले " जी ये अधूरा ही नाम है, जो हमनें इसके हाथो पर दस साल पहले लिखावया था लेकिन दस साल पहले आज ही के दिन महाशिवरात्रि के उत्स्व पर अचानक हुयी उस भगदड़ ने ये नाम अधूरा ही छोड़ दिया "

अपने पिता की बात सुन शिव बोल पड़ा " इसका मतलब जो ख्वान मुझे आते थे वो ख्वाब नहीं बल्कि हकीकत है, जो मुझ पर कभी गुज़री थी, एक औरत जिसका हाथ मेरे हाथ से छूट गया था,, वो आगे जा चुकी थी या यूं कहू लोगो की भीड़ ने उसे अपनी माँ से जुदा कर दिया था, वो चीखता रहा और चीखते कब ज़मीन पर गिर गया उसे पता ही नहीं चला

मनोरमा जी सब समझ गयी थी और बोली " वो औरत जिसने अपनी आँखों के सामने अपने पति को मरते देखा और पागलों की तरह अपने बेटे को ढूंढती रही, उसे उम्मीद थी की उसका बेटा उसे मिल जाएगा भगवान इतने निर्दयी नहीं हो सकते है की एक औरत से उसका सुहाग और उसकी औलाद दोनों ही छीन ले वो भी अपने दर बुला कर "

सुनैना जो जान गयी थी की अब वो चाह कर भी अपने बेटे को सच जानने से नहीं रोक सकती इसलिए खुद ही मनोरमा जी के पैरों में गिरकर रोते हुए बोली "बहन मुझे माफ करदो, मैंने अपने स्वार्थ के खातिर एक माँ को दस साल उसके बच्चें से दूर रखा, लेकिन मैं मजबूर थी, लोगो की बातों और तानो से तंग आ गयी थी, लोग मुझे बाँझ होने की वजह से एक घिर्णा भरी नज़रो से देखने लगे थे, मेरा भगवान पर से भी विश्वास उठने लगा था,

जब मैंने तुम्हारे बच्चें को देखा था, तब मैं ईश्वर से यही प्रार्थना कर रही थी की काश मेरी झोली में भी कोई ऐसा ही बच्चा डाल दे, मुझे और कुछ नहीं चाहिए

और कुछ देर बाद जब इसे घायल जख़्मी देखा तो मेरी मामता जो अब तक मेरे अंदर कही दफन थी बाहर निकल आयी थी, मुझे लगा की जहाँ इतने लोग मारे गए है वहाँ शायद इसके माता पिता भी नहीं रहे होंगे, क्यूँ न मैं ही इसे ईश्वर की देन समझ कर पाल लू

एक बार तो ख्याल आया भी की जब इसे होश आएगा, अपनी माँ का पूछेगा तब मैं क्या करूंगी, लेकिन शायद ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था इसने जब आँख खोली और अपने प्यारे होठो को खोलते हुए माँ पुकारा तो मानो मैं स्वार्थी हो गयी, मेरी ममता ने मुझे स्वार्थी बना दिया और फिर चाह कर भी इसे इसके अतीत में झाँकने नहीं दिया

लेकिन कहते है, न इंसान चाहे कितने भी प्रयास कर ले लेकिन ईश्वर को जो करना होता है वो करके ही रहता है, अब शायद इसे सब याद आने लगा था वो सब जब आप और ये जुदा हुए थे, मुझे माफ कर देना मेरी बहन मेरी ममता ने मेरी पैरों में स्वार्थ की बेड़िया डाल दी थी, जो खुद एक माँ न होने का दर्द और तकलीफ जानते बूझते दूसरी माँ को तकलीफ दे बैठी "

मनोरमा जी को जैसे ही सारी सच्चाई जान पड़ी उन्होंने सब से पहले शिव यानी की शिवम को गले से लगाया और बहुत रोई, आज उन्हें यकीन हो गया था की उनका ईश्वर पर भरोसा यकीनी था और उसने उस भरोसे को नहीं तोड़ा

उसके बाद उन्होंने सुनैना को भी गले से लगाया और धन्यवाद किया क्यूंकि उसकी वजह से उसका बेटा आज उससे मिल पाया, नहीं तो वो जख़्मी हालत में न जाने कहा जाता और कब तक जी पाता

मनोरमा जी, जो की औलाद से दूर होने का दुख जानती थी, इसलिए उन्होंने सोमनाथ जी और सुनैना को भी अपने साथ अपने ही घर आने का रहने का फैसला कर दिया, वो इस तरह सुनैना को उसके बेटे से दूर नहीं करना चाहती थी, अगर वो न होती, उसकी ममता का आँचल उसके बेटे के सर पर न होता तो शायद आज उसका बेटा भी नहीं होता।

मनोरमा के लिए उसका बेटा शिवम था और सुनैना के लिए वो शिव था और शिव के लिए वो दोनों पूरी दुनिया थी।


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