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इश्कदारी ❣️

इश्कदारी ❣️

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डियर उदयन-आशना,

मेरा नाम 'निकुंभ पाठक' हैं, और ये चिट्ठी, मैं आप दोनों को अलग-अलग लिख रहा हूँ, पर आप दोनों के नामों को साथ में...इस वजह से क्योंकि मैं आप दोनों के नामों का संगम देखना चाहता हूँ। हॉं, मैं जानता हूँ कि मैं आपके लिए एक सवाल के समान प्रतीत हो रहा हूँ, या फिर तम़ाम सवालों का झुंड मधुमक्खी के झुंड के की तरह, आपके दिमाग को घेरे होगा जैसे कि क्या आप दोनों मुझे जानते हैं या फिर मैं आपको कैसे जानता हूँ, ये चिट्ठी मैं आपके लिए क्यों लिख रहा हूँ, वग़ैरह-वग़ैरह ! पर आपके तमाम़ सवालों के जवाब आपको इस चिट्ठी को पढ़ने के बाद मिल जायेंगे। शुरुआत करते हैं, मेरी कहानी से..

अम्मा - बबुआ ओ मेरे प्यारे बबुआ, आज पूरी टंकी खाली करने का इरादा है कै..कब तक नहाते रहोगे, ऑफिस नहीं जाना क्या ?

निकुंभ - अम्मा बस कर दे, कम से कम नहा तो ठीक से लेने दिया कर ! क्या करना है, मैनें ऑफिस जल्दी जा कर..बस वहॉं वही चिट्ठियों का ढेर लगा होगा, जिसे पूरे दिन शहर में इधर से उधर करते रहो।

अम्मा - बड़ी जल्दी तैयार हो गये बबुआ ! ये लो तुम्हारा टिफिन, तेरी पंसद के गोभी के परांठे और लहसुन की चटनी बनाई है और ये तेरी फटफटिया की चाबी, जिसे तू बुलेट ट्रेन की स्पीड से चलाता है ! अच्छा, एक बात और कहनी थी कि आज तू ऑफिस से जल्दी आ जाना।

निकुंभ - अम्मा, अब कौन सा बम फोड़ना है, तुझे ?

अम्मा - बम नहीं बबुआ, मुझे तो बस जल्दी से तेरी शादी की शहनाई सुननी है, और इसी सिलसिले में आज हमें कहीं जाना है।

निकुंभ - कितना बार बताऊँ तुझे, मुझे कोई शादी-वादी नहीं करनी। मैं चला ऑफिस..अपना ख्याल रखना।

मुझे एक बात समझ नहीं आती कि मेरी प्यारी अम्मा को ये बात क्यों समझ नहीं आती कि शादी के नाम का लड्डू खाने से मुझे बदहजमी होने का डर लगता है, जब भी शादी के बारे में सोचता हूँ, दिल और दिमाग के बीच ऐसा ट्रैफिक जाम लगता है कि ब्रेक लगाने के अलावा कुछ चारा ही नहीं बचता है।

हमारे घर में अम्मा और मैं..हम दोनों ही रहते हैं, बाबूजी तीन साल पहले हार्ट-अटैक की वजह से हमें छोड़ कर चले गये, बस तब से घर के साथ उनकी नौकरी भी संभाल रहा हूँ, एक सरकारी पोस्टमैन की नौकरी..जिसे पूरे दिन शहर की एक गली से दूसरी गली चिट्ठियों को पहुँचाना पड़ता है। मुझे एक बात और समझ नहीं आती कि इस आधुनिक दुनिया में ये कौन से लोग हैं जो एक दूसरे को चिट्ठी भेजते हैं और हमें शहर की गलियों में अनजाने रास्तों को नापना पड़ता है ! हॉं, मैं जानता हूँ कि बचपन में ये काम मुझे इतना रोमांचक लगता था कि जब बाबूजी अपनी साइकिल से पोस्ट ऑफिस जाते थे तो मैं भी उनके साथ जाने की जिद़ करने लगता था और मेरा मासूमियत सा चेहरा देखकर उनका दिल पिघल जाता था।

आश्चर्य की बात तो ये थी कि घर से पोस्ट ऑफिस का रास्ता सिर्फ आधे घण्टे का हुआ करता था पर रास्ते में मिलने वाले लोगों का अपनी चिट्ठी के लिए बार-बार पूछना..इस सफर को एक घण्टे का बना देता था और कहॉं, अब मेरी फटफटिया की स्पीड और अपनी चिट्ठी के लिए पूछने वाले लोगों की संख्या शून्य होने की वजह से मुझे पोस्ट ऑफिस पहुँचने में पंद्रह मिनट लगते हैं।

दुनिया के अधिकतर लोगों को ये लगता है कि इस मोबाइल, लैपटॉप की आधुनिक दुनिया ने पोस्ट ऑफिस को, चिट्ठियों के कारोबार को खत्म सा कर दिया है। हॉं, जानता हूँ ये बात किसी हद तक सही भी है पर आपको जानकर हैरानी होगी कि कुछ ऐसे महान लोग अभी भी जिंदा है जो चिट्ठियों से अपनी बात साझा करना पंसद करते है !

निकुंभ - अरे ! मंयक भाई, बड़े दिनों बाद दिखे., तो बताओ कर ली शादी.. मुझे क्या लगता है शादी के साथ-साथ हनीमून भी मना लिये, तभी तो इतने दिनों बाद दर्शन दिए !

मंयक - हॉं, बस परिवार की इच्छा थी तो कर ली शादी और अब तुम बताओ, तुम कब अपने सिंगल स्टेटस को मिंगल में कनर्वट कर रहे हो ?

निकुंभ - नहीं भाई, मेरा कौनो इरादा नहीं है, खुद को मिंगल करने का। अब आप ही एक बात बताओ, क्या समाज को खुश करने के लिए हम बैचलर से बीवी के गुलाम बन जाए ? नहीं भाई, मुझसे नहीं होगा !

मंयक - हम तो एक बात जानते हैं, जिस दिन तुम्हें किसी से प्यार होगा ना, उस दिन शादी का लड्डू भी मीठा लगेगा और फिर तुम हमें खुद अपनी शादी का कार्ड दोगे, याद रखना।

निकुंभ - लो भाई, यहॉं हम शादी से पीछा छुड़ा रहे हैं और आप प्यार नाम की चिड़िया से हमारा मन भटका रहे है। हम सब जानते हैं, ये फिल्मों वाला प्यार ही प्यार होता है, बाकी सब हकीकत होती है..

हमें एक बात और समझ नहीं आती कि जब हमारे अम्मा और बाबूजी की शादी लव-मैरिज थी, तो मैं कहॉं से प्यार के दुश्मन बन गया ! बचपन में भी जब कोई लड़की मेरे पास आकर बैठती थी तो मैं उससे दो कदम दूर बैठ जाता था, जैसे जैसे उम्र बढ़ती गयी..वैसे वैसे मेरी और लड़कियों की दूरी भी बढ़ती गयी।

जब अम्मा ने मुझे शादी करने के लिए मनाने की कोशिश गियर में डाल दी, तब लगा किसी डॉक्टर को दोस्त बना ही लूँ, कम से कम बदहजमी का इलाज तो करेगा ! खैर, कहानी के क्लाइमैक्स पर आता हूं, बचपन की बात है जब एक दिन बाबूजी पोस्ट ऑफिस में ज्यादा काम होने की वजह से बिजी थे, तब मैं भी बाबूजी का हाथ बँटाने लगा, अचानक से ना जाने मुझे क्या हुआ कि मैनें किसी की चिट्ठी खोली और उसे इत्मीनान से पढ़ने लगा।

तभी अचानक से चेहरे पर एक तपाक से तमाचा पड़ा, बाबूजी का वो झटाकेदार तमाचा..आज भी बखूबी याद है।

बाबूजी - ये क्या कर थे ! तुम जानते हो किसी की चिट्ठी पढ़ने का मतलब क्या होता है.. चोरी होती है चोरी !

बस उस दिन से मैनें कसम खा ली..दुबारा किसी की चिट्ठी नहीं पढूँगा।

बचपन में खुद से खायी हुई कसम को, मैं बखूबी निभा ही रहा था, पर एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि ये कसम टूट गयी।

एक दिन जब मुझे उदयन-आशना जी आप दोनों की सुंगधित इत्र में डूबी चिट्ठियॉं मिली तो मुझसे रहा ही नहीं गया और मैनें आप दोनों की चिट्ठी पढ़ डाली या कहूँ प्रेम-पत्र पढ़े। हॉं, जानता हूँ..एक तरीके से चोरी की..पर सच कहूँ तो इस चोरी की सजा भी मुझे अलग मिली, कुछ मीठी सी.. आप दोनों के प्यार में डूबे शब्दों ने मुझे भी मोहब्बत से मुलाकात करा दी।

क्या आप जानते हो उदयन जी, जब जब आप अपनी चिट्ठी में आशना जी की खूबसूरती का जिक्र करते, तब तब मेरे दिल में आश्ना जी को देखने की एक अजीब सी बैचेनी हो उठती थी, इसलिए एक दिन मैं पोस्ट ऑफिस से छुट्टी लेकर पहुँच गया आशना जी के घर और जब वहॉं पहुँचकर आशना जी को देखा तो मैं मंत्र-मुग्ध ही हो गया। सच कहूँ तो, आप दोनों की चिट्ठियों को पढ़कर लगता था कि कौन बेवकूफ मियॉं-बीवी मोबाइल को छोड़कर..पत्रों की भाषा को अपनाता है ! पर जब आपकी लव स्टोरी की ब्रेंकगाउड कहानी पता चली तो रो ही पड़ा, "आप दोनों की उम्र मेरी अम्मा की उम्र से भी कहीं ज्यादा होंगी, अपने टाइम के कॉलेज के सबसे फेमस गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड.. परिवार की उम्मीदों की वजह से, आज अपने हँसबैंड और अपनी वाइफ के साथ एक ऐसी जिंदगी जी रहे हैं जिसमें बाहरी खुशी तो हैं पर अंदरुनी सिर्फ खामोशी बसी हुई है..जिसका जिक्र आजकल आप दोनों अपनी चिट्ठियों में करते हैं।

जितना प्यार तब था, आज भी उतना ही हैं..हॉं, बस अब जिंदा होता है सिर्फ कागजों से बनी अपनी प्रेम भरी चिट्ठियों में।

आप दोनों की चिट्ठियों को पढ़ते पढ़ते..कब मैं प्यार के असल मायने जानने लगा पता ही नहीं चला, एक तरफ आप दोनों से शुक्रिया कहना चाहता हूँ..मुझे नयी जिंदगी देने के लिए और दूसरी तरफ आप दोनों से माफी, आप दोनों की निजी चिट्ठियों को पढ़ने के लिए.. आखिर मैं एक बात और कहना चाहूँगा, मेरा नाम

' निकुंभ पाठक ' नहीं है..वो क्या है ना अगर आपने मेरी शिकायत कर दी तो मेरी नौकरी चली जायगी और अब मुझे मेरी कभी ना पंसद आने वाली नौकरी बहुत प्यारी लगती है। अच्छा चलता हूँ, अक्षिता के लिए चिट्ठी लिखनी है। अरे ! अपनी होने वाली संगिनी के लिए ❣️

आपका

नटखट पोस्टमैन।


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