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Ekta Rishabh

Romance

3  

Ekta Rishabh

Romance

आई मिलन की बेला !!

आई मिलन की बेला !!

8 mins
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गुड्डन गुड्डन का शोर सा मचा था सारे घर में। गिरधारी जी गुस्से से गुड्डन को आवाज़ लगाते पूरे घर में ढूंढ रहे थे। माँ और चाची दोनों रसोई के बाहर खड़ी गिरधारी जी को चुपचाप देख रही थी।" उनके गुस्से के डर से दोनों में से किसी की हिम्मत ना थी उनसे कुछ पूछे या उन्हें रोके.. हाँ ! अगर चाचा घर पे होते तो वो जरूर रोकते उन्हें।"


दो मंजिले मकान की छत के एक कोने में खड़ी गुड्डन डर से थर्र थर्र काँप रही थी। गुड्डन के बाऊजी यानी गिरधारी जी की आवाज़ पास और पास आती जा रही थी और आखिर वही हुआ जिसका डर गुड्डन को था।" बाऊजी ने गुड्डन का हाथ पकड़ लगभग उसे घसीटते हुए आंगन में ला पटक दिया।"


गिरधारी लाल शहर के जाने माने प्रतिष्ठित लोगों में जाने जाते थे। एक रौबदार शख्सियत के मालिक अपना बिज़नेस था। छोटा भाई मनोज और उसका परिवार साथ में प्रेम से रहते थे अभी गिरधारी जी ने अपना हाथ उठाया ही था गुड्डन पे की मनोज सामने आ गया। "ये क्या भैया इस तरह सयानी लड़की पे हाथ उठाना आपको शोभा नहीं देता।"


पूछो इससे कहाँ घूम रही थी उस मास्टर के बेटे के साथ।" सबकी नज़रें गुड्डन पे टिक गई और गुड्डन शर्म से जमीन में गड़ी जा रही थी।" आज बंसी ने देखा और भी पता नहीं किस किस ने देखा होगा मेरी इज़्ज़त मिट्टी में मिलाने चली है तुम्हारी भतीजी।

"हट जाओ छोटे मनोज को परे हटाते हुए गिरधारी लाल गुस्से से चीखे और वही बेहोश हो मनोज की बांहों में गिर पड़े।"


घर में चीख पुकार मच गई तुरंत डॉक्टर आये। देखिये घबराने की कोई बात नहीं है थोड़ा bp हाई हो गया था। पूरा आराम दे इन्हें और हाँ कोई परेशानी वाली बात ना ही हो तो इनके स्वस्थ के लिए अच्छा होगा वरना कुछ भी हो सकता है।


डॉक्टर तो चले गए और गुड्डन की माँ सीता जी का रो रो के बुरा हाल हो गया था। इन सब में कोई सबसे आहत हुआ था तो वो गुड्डन थी कहीं बाऊजी को कुछ हो जाता तो..., ये सोच सोच दिल बैठा जा रहा था। तभी माँ कमरे में आयी और गुड्डन को झकझोरते हुए पूछा, " ये क्या कह रहे थे तेरे बाऊजी आज कहाँ घूम रही थी तू बता मुझे।"


माँ ऐसे ना बोलो मैं प्यार करती हूँ सोनू से गुड्डन के बोलते ही एक चाँटा माँ ने उसके गालों पे रखा दिया। गोरे गाल लाल हो गए..। उस लफंगे से प्यार करती है पता है कितना बदमाश है। लड़कियों को छेड़ते तो मैंने भी देखा है उसे

क्यूँ माँ? " भैया भी तो छेड़ते है लड़कियाँ गुड्डन भी ढीठ की तरह अपनी माँ से जुबान लड़ाने लगी।" चुप कर शर्म नहीं आती जुबान लड़ाते हुए... "अरे वो लड़का है लड़का, भले घरों की कुंवारी लड़कियाँ यूँ लड़कों के साथ प्रेम नहीं करती।" माँ की बात सुन अभी गुड्डन ने मुंह खोला ही था की चाचा आ गए।


ये क्या इतनी जल्दी डॉक्टर साहब की बात भूल गए आप दोनों और गुड्डन कान खोल के सुन ले अगर भईया को कुछ हुआ तो इसकी जिम्मेदार तू होंगी। फिर हम सब भी जहर खा लेंगे उसके बाद करते रहना जो मर्जी आये। इतना कह चाचा और माँ निकल गए कमरे से और पीछे रह गई सिसकती गुड्डन"नाजुक उम्र का प्यार कहाँ समाज और जात पात देखता है।"

सोनू और गुड्डन पड़ोसी से प्रेमी कब बन गए पता ही नहीं चला, दोनों प्रेमी छिप छिप के मिलते रहते और आज इसकी भनक बाऊजी को लग गई।


बाऊजी ने तो सूरत भी देखनी बंद कर दी अपने गुड्डन की। जिसे देखे बिना कोई शुभ काम नहीं करते थे बाऊजी आज उन्होंने अपना मुँह फेर लिया था अपनी गुड्डन से। कहीं आने जाने की पाबन्दी लग गई थी। आनन फानन में लड़का देखा गया। चाची के रिश्ते में था लड़का नाम था सुमित बॉटनी का प्रोफेसर था कानपुर में। आनन फानन में शादी कर दी गई सुमित और गुड्डन की


बिलकुल एक लाश की तरह सारे विधि विधान पूरे कर गुड्डन विदा हो गई। पूरे रास्ते रोती रही गुड्डन "कितनी बार अपनी सहेली से खबर भी भिजवाया था सोनू को लेकिन उसने कोई जवाब ही नहीं दिया था।" सब समझें गुड्डन घर वालों के लिए रो रही है पर ये आंसू तो पहले प्यार के टूटने के ग़म में थे। विदा के वक़्त माँ ने अपनी क़सम दी थी की कुछ भी हो जाये सोनू का नाम जबान पे मत लाना।


ससुराल में भव्य स्वागत हुआ गुड्डन का। चाचा ने इतने तोहफ़े दिए थे की सब के मुँह खुले के खुले रह गए थे। "मुँह दिखाई की रस्म में लाल बनारसी साड़ी में गुड्डन अप्सरा सी लग रही थी ", लेकिन उसके कुम्लाये चेहरे को देख कुछ औरतों खुसुर फुसुर करने लगी। लेकिन सास ने ये कह की मेरी बहु बहुत कोमल है शादी की थकान से चेहरा मुरझाया लग रहा है बात को टाल दिया


रात को फूलों से सजे कमरे में गुड्डन को जेठानी ने पहुँचा दिया। गुड्डन का दिल बैठ गया ये तो सोचा ही नहीं था। अब क्या करें उसका तन मन तो सिर्फ उसके सोनू का था किसी और का तो उसने सोचा भी नहीं था। जैसे ही सुमित कमरे में आये गुड्डन एक कोने में जा खड़ी हो गई।

गुड्डन के हावभाव देख समझदार सुमित को लगा शायद जल्दी में शादी हुई है तो गुड्डन झिझक रही है।

"जब तक आप इस रिश्ते में कम्फर्टेबले ना हो हम दोस्तों की तरह रहेंगे इतना कह सुमित और सोफे पे सो गया।" गुड्डन को सुमित के इस जवाब की आशा नहीं थी कहाँ तो वो सोच रही थी की सुमित अपने पति होने का रोब जमायेगा और निकला बिलकुल विपरीत।


एक हफ्ते बाद सुमित गुड्डन को ले कानपुर आ गया। चुपचाप सी गुड्डन जितना सुमित पूछता बस उठना ही जवाब देती। सुमित गंभीर इंसान था ज्यादा बात वो भी नहीं करता था तो उसे लगा शायद गुड्डन भी वैसी ही होंगी। एक बात सुमित को परेशान करती की गुड्डन के चेहरे पे नवविवाहिता की ख़ुशी नहीं दिखती थी।

सुमित अपने तरफ से प्रयास करता गुड्डन ख़ुश रहे। नई नई शादी के कितने अरमान होते है जोड़ो में ऐसा कुछ भी नहीं था इन दोनों के बीच।" गुड्डन शाम को चलो कोई पिक्चर देखते है और खाना भी बाहर ही खा लेंगे... जब सुमित ने कहा तो बेमन से ही पिक्चर के नाम पे गुड्डन तैयार हो गई।"


"पिक्चर देखते हुए जब सुमित ने गुड्डन के हाथ को धीरे से छुआ तो गुड्डन ने अपना हाथ झटक दिया सुमित को बुरा तो लगा पर उसने कुछ कहा नहीं।" इसी तरह दिन बीत रहे थे। " एक रोज़ सुमित कॉलेज से आया तो देखा गुड्डन बुखार से तप रही थी।" तीन दिन तक गुड्डन को होश नहीं था दिन रात सेवा की सुमित ने रातों को जाग जाग सिर पे गीले कपड़े की पट्टी लगता, अपने हाथों से सूप पिलाता।


सोनू के तरफ से आहत गुड्डन का मन सुमित के अच्छे स्वभाव से संभलने लगा था। कमजोर गुड्डन का सुमित बच्चों की तरह ध्यान रख रहा था। अब धीरे धीरे ही सही एक नई दोस्ती की शुरुआत हो गई दोनों के बीच में।

अब जा के गुड्डन ने सुमित को ध्यान से देखा भी था। "छः फुट लम्बा सुमित साँवली सूरत और आँखों पे चश्मा बिलकुल प्रोफेसर शकल से ही लगते है मन ही मन सोच हॅंस पड़ी गुड्डन।" उसे यूँ खिलखिलाता देख चौक गया सुमित शादी के बाद आज पहली बार हँसते देखा था।


"क्या हुआ? सुमित ने पूछा तो अपना सिर ना में सिर हिला रह गई गुड्डन "....। "रोज़ सुबह सुमित आई मिलन की बेला गीत लगा देते और गुड्डन शर्मा जाती जाने क्या बताना चाहते थे सुमित।" सुमित का स्वभाव गुड्डन को आकर्षित करता लेकिन सोनू ज़ेहन से निकल ही नहीं पा रहा था।

इस बीच ख़बर आयी की गुड्डन माँ सीढ़ियों से गिर पड़ी है और चोट आयी है। तुरंत सुमित और गुड्डन निकल पड़े घर। माँ अब ठीक थी और घर आ गई थी। पहली बार सुमित घर आये थी तो सब बहुत ख़ुश थे।


बाऊजी का भी गुस्सा अब पिघल रहा था। गुड्डन के सिर पे जब हाथ फेरा बाऊजी ने तो लिपट गई गुड्डन अपने बाऊजी से और माफ़ी माँगने लगी। मायके आ सोनू के रुसवाई से आहत गुड्डन ने मौका देख अपनी सहेली को बुलवा लिया और सीधी छत पे जा बैठ गई।

रानी तूने वो ख़त भिजवाया था ना सोनू को फिर क्यूँ नहीं भेजा उसने जवाब। तुझे कुछ कहा था क्या सोनू ने बता ना रानी चुप क्यूँ है?


देख गुड्डन खुद को भाग्यशाली मान की बच गई उस लफंगे सोनू के जाल से। क्या? रानी की बात सुन गुड्डन चौंक गई... क्या बात है मुझे बता रानी...  "लड़कियों को फ़साना और उनके इज़्ज़त से खेलना यही काम था उस सोनू का, तेरे शादी के बाद किसी लड़की ने थाने में रिपोर्ट कर दी उसके खिलाफ अब बंद है जेल में सोनू ।"

इतना शरीफ और अच्छा पति मिला है अपने जीवन को सोनू के लिए बर्बाद मत कर बहन। ऐसा पति ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगा। रानी चली गई और गुड्डन छत पे बैठी बैठी सोचती रही कितना अनर्थ हो जाता अगर बाऊजी को पता नहीं चलता तो।


सोनू को दिल से मिटा, "सुमित को अब दिल से अपना मान चुकी थी गुड्डन।" शाम को दोनों लौट गए वापस कानपुर। अपने व्यवहार पे बहुत शर्मिंदा थी गुड्डन कितने नेक दिल थे सुमित। " कौन महीनों दूर रहता है अपनी नई नवेली पत्नी से सिर्फ इसलिये की उसकी पत्नी को वक़्त चाहिए।"


अगले दिन कॉलेज से आने के बाद सुमित को गुड्डन कहीं नज़र नहीं आयी। कमरे में गया तो "सुर्ख लाल जोड़े में सोलह सिंगार किये दुल्हन बनी गुड्डन अपने सुमित का इंतजार कर रही थी " और आई मिलन की बेला गीत रेडियो पे बज रहा था। "सही मायनों में तो आज ही आयी थी इनके मिलन की बेला।"

एक पल भी ना लगा सुमित को समझने में और अपनी बाहें फैला दी अपने गुड्डन के लिये। सुमित की तपस्या आज पूरी हुई थी... और गुड्डन भी अपना अतीत भुला पुरे मन से सुमित के बाहों में समा गई



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