खो चूका हूँ तुम्हें !!
खो चूका हूँ तुम्हें !!
सुनो आज कल तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही पेट में थोड़ा थोड़ा दर्द रहता है"।
"कोई पेन किलर खा लो आराम मिल जायेगा"।
"वो मैं सोच रही है सफाई के लिये किसी को रख लू "?
"क्यों पैसे क्या पेड़ पे उगते है जो सफाई वाली को तोड़ के दे दू सिर्फ चार लोगो के काम में तुम थक जाती हो "। विजय के कठोर शब्दों को सुन सीमा का चेहरा उतर गया।
"ओफ्फो इसमें मुँह लटकाने की क्या बात है मैं तो तुम्हारे सेहत के लिये ही बोल रहा हूँ ना हर छोटी बात के लिये अंग्रेजी दवाइयां लेनी ठीक नहीं होता और घर के कामों को करने से तुम्हारी सेहत भी ठीक रहेगी और कामवालियों को देने वाले जो पैसे बचेंगे वो बच्चों की पढ़ाई के काम ही आयेंगे "।
पिछले पंद्रह सालों से यही सब देख सुन रही थी सीमा। जब भी अपनी सेहत या काम की मदद के लिये कुछ कहती विजय ऐसी ही बातें कर चुप करा देता। इस बार भी विजय ने अपनी चालाकी दिखा सीमा को चुप करवा दिया।
सीमा और विजय की शादी को पंद्रह साल होने को आये थे। विजय हद से ज्यादा कंजूस इंसान था। जब तक इमरजेंसी ना हो डॉक्टर तक के पास जाने से कतराता। घर में सास ससुर, दो बच्चे और विजय था। सब के ढ़ेर सारे काम होते लेकिन मजाल है की सीमा कामवाली रख लेती। हर बार उसे उसके कर्तव्य सास ससुर और पति याद दिलाते रहते लेकिन खुद के क्या कर्तव्य थे इसका उनको तनिक भी आभास नहीं था।
सुबह से शाम हो जाती घर वालों की फरमाइशें पूरी करते करते। दोनों बच्चे भी समझदार हो रहे थे ऐसे में कामवाली की बात पे लड़ाई करना और माहौल बिगड़ना सीमा को उचित नहीं लगता। आंसू पोछ एक पेनकिलर खा सीमा लग गई घर के कामों में लेकिन आज जैसे दवाई भी कोई असर नहीं कर रही थी शाम होते होते दर्द जब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो सीमा ने विजय को फ़ोन किया, " बहुत पेट दर्द हो रहा है चक्कर भी आ रहे है विजय जल्दी घर आ जाओ। सीमा की आवाज़ सुन आज पहली बार विजय को कुछ गलत का आभास हुआ। आनन फानन में सीमा को एडमिट किया गया सारे टेस्ट के बाद डॉक्टर ने सेकंड स्टेज लिवर कैंसर है।
विजय वही सर पकड़ के बैठ गया डॉक्टर के शब्द कानो में गूंज रहे थे। बहुत देर कर दिया आपने सही समय पे आते तो ईलाज आसान होता अब तो कीमो ही करवाना पड़ेगा। घर में कोहराम मच गया बूढ़े सास ससुर और बच्चों के आंसू थमने का नाम नहीं लें रहे थे आज सबको अपनी गलतियां दिख रही थी। जब पूरा परिवार टीवी देखता और सीमा घर का काम मजाल थी की कोई कभी मदद का हाथ बढ़ाता कभी सीमा सास से मदद मांगती तो सासूमाँ बदले में सुना देती " एक हम थे जो अपनी सास को हाथ में सब देते और एक मेरी बहु है "| परिवार में बड़ो को देख दोनों बेटे भी किसी काम में मदद नहीं करते। आज विजय भी पछतावे में जल रहा था उसकी कंजूसी और लापरवाही ने आज सीमा की ये हालत कर दी थी। पिछले एक साल से दर्द होता था सीमा को हर बार एक पेन किलर खिला देता विजय। खाना पचना कम हो गया सीमा को तो विजय कहता थोड़ा घुमा करो दिन भर बैठी रहती हो।
सीमा का मुरझाया चेहरा जैसे विजय पे हॅंस रहा था, "लो देख लो अपनी कंजूसी का नतीजा अब संभालो अपने पैसे अब तो पेन किलर की भी जरुरत नहीं पड़ेगी "रो पड़ता विजय आज अपने हाथों उसने अपने परिवार को ख़त्म कर दिया था।
सीमा का ईलाज शुरू हुआ लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। हाई डोज दवाई और कीमो सीमा बर्दाश्त नहीं कर पाई और अंनत यात्रा पे निकल पड़ी अपने पीछे विजय और परिवार को छोड़। अब हर दिन विजय पछताता काश सीमा की परेशानी समझी होती तो उसे यूं खोना ना पड़ता। अब सास भी काम करती और बच्चे भी विजय भी शाम को अपनी माँ की मदद करता। एक मौन सा पसरा रहता और ऑंखें सबकी नम रहती क्यूंकि सब खुद को अपराधी मान रहे थे सीमा के।
पुरुष पति बन तो जाते है लेकिन क्या कर्तव्य निभाते है पति के? पुरुष को अपने सारे अधिकार पता होते है लेकिन क्या अपनी पत्नी के प्रति अपने कर्तव्य का ज्ञान होता है? अगर विजय ने अपनी जिम्मेदारी समझी होती सीमा की परेशानी समझी होती तो यूं उसका परिवार नहीं बिखरता ; विजय को असमय अपनी पत्नी को खोना नहीं पड़ता। बात छोटी सी है लेकिन सोचने वाली है।
प्रिय पुरुष पाठक गण खुद के साथ अपने घर की स्त्रियों की भी देखभाल करें उनकी शारीरिक परेशानियों को मामूली समझ नज़रअंदाज़ ना करें वर्ना थोड़ी सी लापरवाही कभी कभी बहुत कुछ खोने पे मजबूर कर देती है।
