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Ekta Rishabh

Drama Inspirational

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Ekta Rishabh

Drama Inspirational

अब और समझौता नहीं!

अब और समझौता नहीं!

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माँ, अब थोड़ा एडजस्ट तो करना ही पड़ेगा आपको वैसे भी रिया अपना घर अपने मम्मी पापा को छोड़ कर आयी है। थोड़ा समय तो लगेगा ही नये घर में और फिर आप सास है उसकी आप नहीं समझेंगी तो कौन समझेगा? पापा समझाइये ना माँ को की एडजस्ट कर ले आखिर कोई गैर नहीं हम आपके ही तो बेटे बहु है।" मदन जी के कानों में गूंजते अपने बेटे रजत के ये शब्द उन्हें सोने नहीं दे रहे थे। रात की ख़ामोशी में रजत के शब्द जैसे उनके मन में भूचाल सा ले आया था। पास ही निर्मला गहरी नींद में सोई थी। एक नजर निर्मला पर डाल मदन जी उठ कर बालकनी में आ गए।


समझौता, कितना छोटा सा शब्द है लेकिन उतनी ही कठिन हो जाती है समझौता करने वाले की जिंदगी। एक बार जिसने समझौता कर लिया क्यों हर बार उसी से समझौते की उम्मीद की जाती है?

पहले माँ फिर भाई और अब बेटा सबकी उम्मीद सिर्फ निर्मला से रही की वो समझौते करें लेकिन क्या किसी ने निर्मला के लिये समझौता किया?

दिमाग़ में बार बार उठते इन प्रश्नों के उतर जाने के लिये मदन जी का मन उन्हें अतीत की गहराइयों में ले जाने को व्याकुल हो रहा था।


नयी बहु आ गई का शोर मचा था। लाल सुर्ख जोड़े में नव जीवन ले हजारों सपने सजाये आज निर्मला अपने पति मदन के साथ अपने ससुराल की चौखट पर खड़ी थी। नन्दें, रिश्ते की भाभियाँ ने हंसी मज़ाक करती गीत गाती हुई नव वरवधु को गृहप्रवेश करवाया। मंदिर में छोटी सी पूजा के बाद मुँह दिखाई की रस्म शुरू कर दी। लेकिन इन सब के बीच निर्मला को उसकी सास कहीं नज़र नहीं आ रही थी हो सकता है व्यस्त होंगी। मन ही मन निर्मला ने सोच लिया।


निर्मला को ससुराल आये चार पांच दिन बीत चुके थे लेकिन इस बीच एक बार भी निर्मला की सास के साथ उसकी कोई बात नहीं हुई थी। दिन के एक दो बार वो कमरे में आती और दो मिनट रुक चली जातीं| चेहरे पर ना कोई हंसी ना नयी बहु घर लाने का उत्साह यूँ लगता जैसे निर्मला उन्हें पसंद ही ना हो।

समय के साथ साथ निर्मला की शंका सच साबित हुई थी। कमाऊ बेटा अब कहीं पत्नी की मुट्ठी में ना आ जाये ये भय निर्मला की सास के कटु व्यवहार का कारण था।

" देखो निर्मला माँ ने बहुत कष्टों को सह हम दोनों भाइयों को पाला है मैं नहीं चाहता इस उम्र में उन्हें कोई दुख या परेशानी हो इसलिए मैं तुमसे कह रहा हूँ की समझौता कर लो और जैसे माँ कहे वैसा ही करो आखिर इस घर की बड़ी बहु हो तुम। " जितनी आसानी से मदन जी ने ये बात निर्मला को कह दी उतनी ही मन से निर्मला जी ने मान भी लिया और समझौता कर लिया।


अब घर में निर्मला की सासु माँ का ही डंका बजता। हर महीने मदन जी अपनी तनख्वाह अपनी माँ के हाथों में देते और घर की हर चीज उनकी माँ के अनुसार ही होती। एक पत्नी और एक बहु के सारे अधिकार छोड़ निर्मला ने समझौते की जिंदगी स्वीकार कर ली थी। अब मदन जी माँ बहुत ख़ुश थी क्योंकि उनका कमाऊ बेटा उनकी मुट्ठी में था और बहु उनके अनुसार चलती थी। लेकिन निर्मला कुछ उदास जिसे भली भांति समझ कर भी मदन जी चुप रह गए।


कुछ समय बीता और छोटे भाई की शादी भी हो गई। निर्मला की देवरानी चालक और आलसी महिला थी। घर में काम बढ़ गया था लेकिन हाथ अभी भी दो ही थे और वो थे निर्मला के। देवरानी किसी काम में सहायता नहीं करती।


"सुनिये ज़रा देवर जी को कहिये की देवरानी जी को समझाये अब कितने दिन नयी बहु बन कर रहेगी थोड़ा घर के काम काज में हाथ बंटा दिया करें।" निर्मला की बात मान मदन जी ने इस बात की चर्चा क्या की छोटा भाई और उसकी पत्नी ने घर में कोहराम मचा दिया बात घर के बंटवारे तक आ गई।

" जाने दो निर्मला जैसे आज तक काम किया वैसे आगे भी कर लेना चाहो तो कोई कामवाली रख लो। घर का बंटवारा किसी दृष्टि से उचित नहीं होगा लोग क्या कहेंगे? आखिर कोई गैर नहीं अपने ही दोनों।" अपने पति की बात मान इस बार भी निर्मला के हिस्से समझौता ही आया था।


सीधी सरल पत्नी को हर बार समझौता कर लेने को कहना मदन जी को अच्छा तो नहीं लगता था लेकिन कभी घर परिवार तो कभी आर्थिक परिस्थितियों से मजबूर हो उन्हें ये कदम उठाना पड़ जाता था | रजत बड़ा हो रहा था कभी स्कूल फीस तो कभी किताबें हर बार अपने पति की मज़बूरी समझ निर्मला को ही अपने खर्चो में कटौती कर समझौता करना पड़ता था।


समय के साथ माँजी नहीं रही और छोटा भाई विदेश बस गया अब कुछ सुख निर्मला के हिस्से में आये थे। धूमधाम से रजत की शादी हुई नयी दुल्हन रिया आधुनिक विचारों की लड़की थी दिन चढ़े तक सोना, आधुनिक कपड़ो घूमना और अगर निर्मला टोक दे तो नाराज हो उल्टा जवाब देना। निर्मला ने रजत को टोका तो रिया को समझाने की बजाय रजत ने अपनी माँ को ही सुना दिया। बेटा इतनी जल्दी बदल जायेगा ये मदन जी ने नहीं सोचा था। लेकिन सही भी था रजत कम से कम रिया के लिए आवाज़ तो उठाया उन्होंने ने क्या किया था आज तक सिर्फ मजबूर समझौता करने को लेकिन अब और नहीं मेरी पत्नी अब कोई समझौता नहीं करेंगी। एक नये दिन के साथ एक फैसला ले चुके थे मदन जी मन का बोझ अब हल्का हो चूक था।

" ये क्या इतनी सुबह खुले में बिना शौल के खड़े है कहीं ठण्ड लग गई तो चलिये अंदर चाय बनाने जा रही हूँ।" निर्मला जी मीठी डांट सुन मदन जी मुस्कुराते हुए अंदर आ गए।


रजत भी तब तक नीचे आ चूका था।


"बेटा रजत कल तुम्हारी बातों पर गौर किया मैंने सही कहा था तुमने रिया बहु है हमारी थोड़ा समय तो देना ही चाहिये एडजस्ट करने के लिये तो ऐसा करो जो जॉब ऑफर तुम्हें बंगलौर की मिल रही है वो स्वीकार कर लो और तुम दोनों वहाँ शिफ्ट हो जाओ। रिया को भी समय मिल जायेगा।"


" लेकिन पापा...? मैंने ऐसा क्या कह दिया जो आप मुझे बंगलौर शिफ्ट होने को कह रहे है और फिर माँ को तो मैंने बचपन से एडजस्ट करते देखा है कभी दादी तो कभी चाची के साथ तो अब रिया के साथ क्या समस्या है? "


" रजत जैसे तुम अपनी पत्नी का सोच रहे हो वैसे ही मैं भी अपनी पत्नी का सोच रहा हूँ मानता हूँ देर हो गई मुझसे तुम्हारी दादी और चाची के लिये मैंने ही मजबूर किया था तुम्हारी माँ को लेकिन अब और नहीं मेरी पत्नी अब कोई समझौता नहीं करेंगी। उम्र के इस पड़ाव पर अब मेरी पत्नी स्वाभिमान के साथ रहेगी ना की समझौते कर।'


अपने पापा की दो टुक बात सुन रजत चुप रह गया वहीं रसोई से बाप बेटे की बातें सुनती निर्मला के आँखों के कोर भींग गए। आज सही मायने में मदन जी ने पति का धर्म निभाया था।



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