Ekta Rishabh

Inspirational

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Ekta Rishabh

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बड़े घर की बहु

बड़े घर की बहु

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मंच पे जैसे ही अंकिता का नाम अनाउंस हुआ पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा । महामहिम राजपाल से डिग्री लेती अंकिता को देख राधेश्याम जी गदगद हो उठे । ऑंखें ख़ुशी से छलक उठी तो सीना गर्व से चौड़ा हो गया । आस पास बैठे लोग राधेश्याम जी को बधाई देने लगे थे लेकिन राधेश्याम जी की नज़र तो सिर्फ अंकिता के चेहरे और उसके गले में लटकते गोल्ड मेडल पे टिकी थी ।

मंच से उतरते ही स्थानीय पत्रकारों ने अंकिता को घेर लिया, " अंकिता जी बताइये कैसा लगा रहा है आपको? पूरे विश्वविद्यालय में आपने टॉप किया है साथ ही विदेश से स्कॉलरशिप का ऑफर भी मिला है आपको । अपनी इस शानदार सफलता का श्रेय किसे देंगी " ।

मुस्कुराती अंकिता सवाल सुन आगे बढ़ गई और सीधा जा राधेश्याम जी के चरणों में झुक गई ।

" पापा आज आपकी बेटी ने आपका सपना सच कर दिया "।

" आप सब पूछ रहे थे ना मेरी इस उपलब्धि के पीछे किसका योगदान है तो आज मैं आप सबको उस इंसान से मिलवाती हूँ ; और इंसान है मेरे पापा श्री राधेश्याम जी जिनके बिना यहाँ तक पहुंचना मेरे लिये कभी संभव ना होता " । पत्रकारों के सारे सवालों का आत्मविश्वास के साथ ज़वाब दे अंकिता और राधेश्याम जी ने अपने घर की ओर रुख किया ।

कार की खिड़की से पीछे छूटते पेड़ पौधो के साथ साथ राधेश्याम जी का मन भी पीछे की ओर भागने लगा ।

राधेश्याम जी समाज के उस तबके से आते थे जहाँ बेटियों की पढ़ाई का कोई ख़ास महत्व नहीं था या यूँ कहें की बेटियों को पढ़ाना ही व्यर्थ समझा जाता था । "बेटियों को तो दूसरे के घर जाना है और ससुराल में चूल्हा चौका ही संभालना है फिर पढ़ लिख कर क्या करेंगी " । ये मानसिकता बहुत आम थी और राधेश्याम जी इस मानसिकता के पुरजोर विरोधी ।

राधेश्याम जी हाई स्कूल में गणित के शिक्षक थे । एक बेहद ईमानदार व्यक्ति । साधारण रहन सहन था घर का एक बेटा और एक बेटी दोनों को पढ़ाना एक मात्र लक्ष्य था राधेश्याम जी के जीवन का ।

राधेश्याम के अभिन्न मित्र थे सोहनलाल जी कहने को तो शिक्षक लेकिन सोच से अशिक्षित । अंकिता, सोहनलाल की ही बेटी थी पढ़ने में बेहद होशियार । जब भी राधेश्याम जी अपने मित्र के घर जाते अंकिता अपने गणित के कठिन सवाल पूछने लगती ।

" चाचा जी आप पहले मेरे सवाल बतायें फिर पापा से बातें कीजियेगा "  । अंकिता की बालसुलभ ज़िद देख राधेश्याम हँसते तो सोहनलाल नाराज़ होते ।

"इस लड़की को पढ़ने का शौक चढ़ा है जाने पढ़ कर करेंगी क्या? अरे ज्यादा पढ़ ली तो लड़का मिलना भी मुश्किल हो जायेगा शादी के लिये । चल भाग यहाँ से जा के चाय बना ला " ।

अपने पिताजी की फटकार सुन मायूस अंकिता अंदर जा चाय बना लाती और वापस अपने सवालों से साथ राधेश्याम जी के पास खड़ी हो जाती ।

समय बीत रहा था जहाँ अंकिता दसवीं की परीक्षा देने वाली थी वही सोहन लाल ने अंकिता के लिये लड़के भी देखने शुरू कर दिये ।

" पापा मुझे शादी नहीं करनी आगे पढ़ना है नौकरी करनी है विदेश जाना है" ।

"इतने बड़े घर मे रिश्ता किया है तेरा रानी बन राज करेंगी इतने दौलत की मालकिन बनेगी की दस दस नौकर आगे पीछे घूमेंगे तेरे और तू नौकरी करने की ज़िद कर रही है "।

"ये क्या सोहन, इतनी होशियार बिटिया की इतनी जल्दी क्या मची है शादी करने को और अभी उम्र ही क्या है अंकिता की " राधेश्याम जी ने अपने मित्र को टोका ।

अपने समाज में इसी उम्र में लड़कियों की शादी होती है राधेश्याम भूल गए क्या?

" तुम शिक्षक हो ऐसी बातें कर रहे हो ज़रा भी शोभा नहीं देता तुम्हें सोहनलाल अरे अंकिता पढ़ने वाली बच्ची है उसे पढ़ाओ लिखाओ शादी की क्या जल्दी है "।

सोहनलाल ने ना तो अपने मित्र की और ना ही अंकिता की एक भी बात नहीं सूनी । रोती बिलखती अंकिता को भेज दिया उसके ससुराल ।

राधेश्याम जी को भी बहुत दुःख हुआ अंकिता की पढ़ाई छूटने का लेकिन सोहनलाल पिता थे अंकिता के उनका फैसला सर्वोपरि था सो चुप रह गए राधेश्याम ।

शादी को अपनी नियति मान अंकिता भी रो धो कर चुप कर गई । ससुराल में गृहप्रवेश हुआ अंकिता का । घर क्या हवेली ही थी जिसका हर कोना वहाँ की भव्यता की गवाही दे रहा था । यही सब देख उसके पिता ने रिश्ता तय किया और अंकिता के सारे सपनों को कुचल एक रूढ़िवादी परिवार से दूसरे रूढ़िवादी परिवार में गाय की तरह हाँक दिया गया था ।

पहली रात ही सुहागसेज पे अपने पति का इंतजार करती अंकिता का शराब के नशे में डूबे लडख़ड़ाते अपने पति राहुल से पहला परिचय हुआ । अवाक् रह गई थी अंकिता अपने पिताजी के पसंद को देख क्या इस शराबी ले किये ही उसकी पढ़ाई बंद करवा दी गई थी?

आते ही राहुल ने अंकिता का हाथ पकड़ लिया । असहज हो उठी अंकिता अपना हाथ छुड़ाने का प्रयास करने लगी जितना प्रयास अंकिता करती उतनी ही मजबूत पकड़ राहुल की होती जा रही थी ।

" छोड़िये मेरा हाथ आप होश में नहीं है "" ।

लाख मिन्नतें करती रही अंकिता लेकिन राहुल को क्या उसे तो अपनी मर्दानगी साबित करनी थी । पूरी रात अंकिता के आत्मसम्मान और इज़्ज़त को कुचलता रहा राहुल । फटे कपड़े, बिखरे बाल और जगह जगह बदन से टपकता खून इसकी चीख चीख कर गवाही दे रहा था ।

"मैं तुझे बड़े घर की बहु बनाना चाहता हूँ और तुझे पढ़ने की पड़ी है ऐसा रिश्ता ढूंढा है रानी बन के रहेगी ""। अपने पिता के ये शब्द कानो में गूंज रहे थे अंकिता के ।

मनमानी कर राहुल सो चूका था और अपनी किस्मत पे रोने की बजाय अंकिता ने फैसला ले लिया था ।राहुल के फ़ोन से तुरंत राधेश्याम जी को फ़ोन की सारी बातें रोते रोते बता दी अंकिता ने । राधेश्याम के पैरों से जमीन खिसक गई तुंरत अंकिता के ससुराल को चल दिये ।

"अंकिता को बुलाइये मैं उसका चाचा हूँ " ।

राधेश्याम की जोर जोर से आती आवाज़ सुन अंकिता बाहर उसी हालत में आ गई । सब अंकिता को देख दंग थे । तुंरत अपनी शॉल अंकिता के शरीर पे लपेट दिया राधेश्याम जी ने । गले लग ऐसा करुण रूंदन किया अंकिता ने की सबकी ऑंखें भर आयी । सास ससुर अंकिता के पैरों में गिर पड़े, " कोई पुलिस कम्प्लेन मत करना बहु । तू जो कहेगी हम करेंगे । हमारी इज़्ज़त मिट्टी में मिल जायेगी "।

"और मेरी इज़्ज़त का क्या? इतनी सस्ती लगती है आपको " ?

"मुझे यहाँ से ले चलिये चाचाजी" ।

"हां बिटिया । चल मैं इन लोगो के पास एक पल तुझे नहीं छोड़ूंगा " । तब तक किसी से ख़बर सुन सोहनलाल भी आ पहुँचे ।

अंकिता की हालत देख स्तब्ध रह गए कहाँ तो अपनी बेटी को बड़े घर की बहु बनाने के सपने सजोये थे और कहाँ आज बेटी उसी बड़े घर मे लूटी पिटी खड़ी रो रही थी ।

सोहनलाल आगे बढ़े अंकिता को गले लगाने को लेकिन अपने पिता को पास आता देख घृणा से मुँह फ़ेर लिया अंकिता ने, " अब क्या करने आये है आप पापा? देख लीजिये आपकी बेटी बड़े घर की बहु बनने की क़ीमत दे चुकी है । अब क्या आप मेरी बर्बादी देखने आये है "?

" ना बिटिया ऐसा ना कह मैंने तो तेरा सुख सोचा था ऐसा कुछ होगा ये तो मेरे सपने मे भी नहीं आया था " ।

"बस सोहनलाल जी अब मेरा आपसे कोई संबन्ध नहीं आपके झूठी कुरीतियों पे मेरी बलि बेदी चढ़ चुकी है । मेरी इस हालत की जिम्मेदार कहीं ना कहीं आप भी दोषी है । आज से मैं आपकी बेटी अंकिता नहीं " ।

"और आप सब ये मत सोचियेगा की अंकिता अनाथ है आज से मैं इसका पिता हूँ और आपके बेटे को किसी क़ीमत पे मैं नहीं छोड़ूंगा " आगे बढ़ राधेश्याम जी ने कहा

और बस उसकी पल राधेश्याम जी ने अंकिता का हाथ पकड़ा और अपने घर ले आये । ये सोच लिया की उनके दो नहीं तीन बच्चे है ।

राहुल और उसके परिवार को अंकिता ने पुलिस केस कर जेल भिजवा दिया ।राधेश्याम जी और उनके परिवार का प्यार और सहयोग पा अंकिता ने आज नया इतिहास बना डाला था ।

तभी एक झटके से गाड़ी रुकी और राधेश्याम जी वर्त्तमान मे लौट आये ।

"क्या सोचने लगे पापा घर आ गया चले अंदर" ।

"तू चल बिटिया मैं मिठाईया ले कर आता हूँ आज तो सारे मोहल्ले का मुँह मीठा करना है " ।

राधेश्याम जी की बात सुन बच्चों सा खिलखिला उठी अंकिता और स्नेह से आशीर्वाद मे हाथ उठ गए उसके पिता राधेश्याम जी के ।



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