Ekta Rishabh

Drama

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Ekta Rishabh

Drama

संस्कार का पाठ !

संस्कार का पाठ !

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मेरी फाइल कहाँ रख दिया तुमने? कब से ढूंढ रहा हूँ"। नाराज़ आदित्य की तेज़ आवाज़ बाहर बैठक तक आ रही थी।

सास ससुर को चाय देती अनु भाग कर कमरे में गई। पूरी अलमारी पलट कर बिस्तर पे फैली हुई थी।

" क्या ढूंढ रहे है आदित्य आप"?

"बेवकूफ औरत कब से आवाज़ लगा रहा हूँ अब आ रही हो? मेरी लाल वाली फाइल कहा रख दी तुमने"?

"आपने मुझे कब दी, आश्चर्य से अनु बोली, और ये क्या हालत बना दी कमरे की आपने"?

"मुझसे बहस मत करो फाइल नहीं मिली तो ये सब बाहर फैंक दूंगा।"

"एक मिनट रुकिए मैं ढूंढती हूँ। इधर उधर अनु ने नज़र दौड़ाई और बेड के पास ही फाइलों में दबी लाल फाइल मिल गई।"

अनु के हाथ से गुस्से से फाइल छीन आदित्य बिना नाश्ता किये ऑफिस चले गए। दुखी अनु ने भी सास ससुर को नाश्ता खिला रसोई समेट दी।

अनु और आदित्य की शादी को कुछ समय ही हुआ था। हर तरह से सपन्न ससुराल देख अनु के पापा ने अपनी लाडली की शादी की थी। आदित्य इकलौता बेटा था घर का एक बड़ी नन्द थी जिनकी शादी हो चुकी थी। ससुरजी भी नौकरी से रिटायर हो चुके थे। किसी बात की कोई कमी ना थी लेकिन फिर भी अनु ख़ुश नहीं थी कारण आदित्य का व्यवहार था। जब मूड ठीक होता तो बहुत प्यार से पेश आता और जब मन मुताबिक कुछ ना हो गुस्सा सातवे आसमान पे होता और जो जी में आता बोल देता अनु को। सास ससुर कान में रुई डाल बैठे रहते। एक दो बार अनु ने अपनी सास से कहा भी तो उल्टा अनु को ही सुनना पड़ा।

"मर्द तो ऐसे ही होते है तुम मौका ही क्यों देती हो"?

शांत स्वाभाव अनु घर में कलेश ना हो ये सोच चुप लगा जाती। बिस्तर पे लेटी सुबह की घटना के बारे में सोच ही रही थी की फ़ोन की घंटी बजी बेमन से देखा तो सीमा का नंबर फ़्लैश हो रहा था। आज अपनी प्यारी सहेली का नंबर देख कर भी अनु के चेहरे पे कोई ख़ुशी नहीं आयी ना ही फोन उठाने की इच्छा हुई। थोड़ी देर बाद वापस रीना का का कॉल आया तो अनु ने ये सोच कर की कोई जरुरी काम तो नहीं फ़ोन उठा लिया। दूसरी तरफ हमेशा की तरह चहकती सीमा थी।

"कैसी है अनु"?

"ठीक हूँ सीमा, तू बता कैसी है"?

"चल तैयार हो जा कल आ रही हूँ तेरे घर एक रात रुकूंगी कुछ ऑफिस का काम तेरे ही शहर में निकल गया है। चल कल मिलती हूँ ", और सीमा ने फ़ोन रख दिया। अनु को कुछ कहने या मना करने का मौका ही नहीं मिला।

शाम को आदित्य घर आये तो गर्म गर्म समोसे और जलेबी लें कर आये। हाथों में समोसे जलेबी का पैकेट देख अनु समझ गई अभी मूड ठीक था आदित्य का। चाय नाश्ते के बाद अनु ने सीमा के आने की बात घर में सबको बताई। मूड अच्छा था तो आदित्य भी अनु की सहेली के आने की ख़बर सुन ख़ुश हो गए।

"अरे ये तो अच्छी बात है आने दो और तुम भी तैयारी कर लो आखिर पहली बार कोई आ रहा है तुम्हारे मायके से"।

आदित्य की बात सुन अनु को थोड़ी तसल्ली हुई और ख़ुशी ख़ुशी अपनी सहेली के आने का इंतजार करने लगी।

अगले दिन सीमा आ गई , चुलबुली और बातूनी सीमा ने पल भर में ही अनु के सास ससुर से घुल मिल गई जब आदित्य आये तो वो भी बहुत सलीके से मिले सीमा से। अनु भी ख़ुश थी।

रात को खाने की सारी तैयारी अनु ने कर ली टेबल पे खाना लगा दिया और सबको सर्व करने लगी इतने में सब्ज़ी के डोंगे से थोड़ी सब्ज़ी आदित्य के हाथों पे गिर गई।

"तमीज नहीं है खाना सर्व करने की भी, हाथ जला दिया मेरा "| आदित्य ने अनु को घूरते हुए तेज़ आवाज़ में कहा तो अनु बहुत शर्मिंदा हो गई।

"अनु तो आपकी सहेली तो कहीं से लगती ही नहीं सीमा जी, आप इतनी स्मार्ट और आधुनिक और अनु को देखिये खाना तक ढंग से सर्व करना नहीं आता "|

जहाँ सीमा दंग रह गई आदित्य का व्यवहार देख वहीं सहेली के आगे अपमानित हो अनु की ऑंखें झलक उठी। आदित्य को कुछ ज़वाब दिये बिना सीमा ने बेमन से चुपचाप अपना खाना खत्म किया और थकान का बहाना कर कमरे में चली गई।

रात को सोते समय अनु कमरे में पानी रखने आयी तो सीमा ने उसे गले लगा लिया। सहेली के गले लग अनु टूट गई और बिलख बिलख कर रो पड़ी।

"तू क्यों इतना बर्दाश्त कर रही है अनु? पढ़ी लिखी हो गलत का ज़वाब दो और अपने हक़ और आत्मसम्मान के लिये खुद लड़ना सीखो अनु "|

"कहना आसान है सीमा करना उतना ही मुश्किल"।

"कुछ मुश्किल नहीं है अनु बस हिम्मत चाहिये सही को सही और गलत को गलत बोलने की।"

बिना कुछ ज़वाब दिये अनु वापस चली आयी।

सुबह सीमा को भी निकलना था। नाश्ते के टेबल पे सब बैठे थे और अकेली अनु आलू के परांठे बनाने के व्यस्त थी सीमा ने मदद करनी चाही तो सासूमाँ ने ये कह रोक दिया की, "चार लोग के परांठे भी अकेली नहीं सेंक सकती क्या "?

"अरे हाथ जल्दी चलाओगी या सो गई रसोई में? भूल तो नहीं गई सीमा जी की ट्रैन भी है कभी तो फुर्ती दिखा दिया करो। आदित्य ने खींसे निपोरते हुए कहा। अपनी सहेली को यूं अपमानित होता देख सीमा की सहनशक्ति ज़वाब दे गई वो भूल गई की वो इस वक़्त अपनी सहेली के ससुराल में थी।

"ये कैसे बात कर रहे आप सब अनु से? कैसे लोग है आप लोग? और आदित्य जी क्या आपको इतनी भी समझ नहीं की अनु आपकी पत्नी है कोई नौकरानी नहीं। मैं कहती हूँ ऐसे तो कोई नौकरानी से भी बात नहीं करता। जब मेरे सामने आप ऐसा व्यवहार कर रहे है तो मेरे पीछे क्या करते होंगे"?

"चुप हो जा सीमा"। क्रोधित सीमा को अनु चुप कराने लगी।

"मैं क्यों चुप हूँ अनु "?

"ऐसी सहेली बनाती हो बहु तुम? ज़रा भी तमीज़ और संस्कार नहीं है इसे, समझा दो अपनी सहेली को की वो सिर्फ मेहमान है और मेहमान दूसरे के घरों के मामले में नहीं बोलते "|

सीमा की बातों से बौखलाई सासूमाँ ने अनु को ही डांटना शुरू कर दिया।

"तमीज़ और संस्कार मुझमें है तभी कल से चुप हूँ माँजी अगर तमीज़ ही सिखानी है तो अपने बेटे को सिखाये आप मुझे नहीं जिसे इतनी भी समझ नहीं की अपनी पत्नी से कैसे व्यवहार किया जाता है "।

"और आप सब सुन ले ख़ास कर आदित्य जी आप, अनु आपकी पत्नी है उसे उसके हिस्से का मान सम्मान तो आपको देना ही होगा वर्ना मैं एक समाजसेविका हूँ और घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिये ही काम करती हूँ आगे आप खुद समझदार है की मैं क्या कर सकती हूँ और क्या नहीं "|

और अनु तुम पढ़ी लिखी आधुनिक लड़की हो इस तरह हर वक़्त ससुराल वालों और पति के तानो को सुन कर कब तक रहोगी। आधुनिक सिर्फ कपड़ो और रहन सहन से नहीं आधुनिक विचारों से भी होना चाहिये आदित्य जी, अनु आपकी पत्नी है और एक पत्नी का हक़ होता है पत्नी का मान सम्मान पाना। पत्नी कोई पंचिंग बैग नहीं की जब चाहा अपना गुस्सा और तनाव उस पर निकाल दिया जाये।

सीमा की बात सुन आदित्य बेहद शर्मिंदा हो उठा। अपनी गलती उसे साफ साफ दिख रही थी। सीमा तो वापस अपने शहर चली गई लेकिन जाते जाते आदित्य को सच्चाई का आईना दिखा गई साथ ही अपनी सहेली के जीवन को वापस खुशियों से भर गई। 


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