Ekta Rishabh

Children Stories

4.3  

Ekta Rishabh

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हर बच्चा आलराउंडर नहीं होता !

हर बच्चा आलराउंडर नहीं होता !

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अनु अनु ", पवन बेहद गुस्से में अपनी बेटी अनु को पुकार रहा था। पवन की तेज़ आवाज़ सुन श्रुति जल्दी से कमरे से निकल बाहर की ओर भागी।

"क्या हुआ पवन आप इतने गुस्से में क्यों है"?

"अनु कहाँ है श्रुति"?

"बस पड़ोस में अपनी सहेली के घर गई है लेकिन आप इतने गुस्से में क्यों है"? पवन का गुस्सा देख श्रुति भी घबरा उठी।

"ये देखो रिपोर्ट कार्ड सिर्फ 60% नंबर आये है तुम्हारी लाडली को, क्या फायदा इतने महंगे स्कूल में पढ़ाने और इतने पैसे खर्च करने के जब ऐसा बेकार रिजल्ट आये वहीं अतुल को देखो 95% मार्क्स आये है"।

"जरुरी नहीं पवन जितने नंबर अतुल को आये है उतने ही अनु को भी आये हर बच्चा अलग होता है "। पवन की बातें सुन श्रुति समझ चुकी थी पवन के गुस्से का कारण।

"क्यों जरुरी नहीं श्रुति जब मैं दोनों बच्चों में फ़र्क नहीं करता दोनों को एक सामान सुविधा देता हूँ तो फिर क्यों अनु के नंबर अतुल से कम आते है"?

पवन इतने नाराज़ थे की वो श्रुति की किसी भी बात को सुनने को तैयार नहीं हुआ। और हमेशा की तरह अनु को भी अपने पिता को जोरदार डांट सुनने को मिल गई।अपनी सहमी सिसकती बेटी को देख श्रुति का कलेजा मुँह को आ गया।

रात को बिस्तर पे श्रुति के आँखों की नींद गायब थी, पवन और श्रुति के बारह साल के दो जुड़वा बच्चे थे अतुल और अनु। पवन, खुद एक बड़े सरकारी अफसर थे। हमेशा पवन ने जो चाहा वो पाया था। पवन चाहते जैसे उन्होंने हर क्षेत्र में सफलता पाई थी वैसे ही अतुल और अनु भी पाये। अतुल जहाँ पढ़ने में खेल कूद, वाद विवाद सभी क्षेत्र में अपने पापा की तरह ही होशियार था वहीं अनु पढ़ाई में अपने पिता के उम्मीदों पे कम पर जाती।

अनु की रूचि पढ़ाई में कम और पेंटिंग में ज्यादा थी। इतनी छोटी उम्र में ऐसी पेंटिंग करती की देखने वाला दांतो तले ऊँगली दबा लेता। लेकिन पवन को ये बिलकुल पसंद नहीं था वो चाहते उनके दोनों बच्चे उनकी तरह प्रशासनिक सेवा में ही आये और इसके लिये वो सिर्फ पढ़ाई पे ही जोर देते। अपने पिता के अति महत्वकांक्षा को पूरा कर पाने में असमर्थ अनु अब अपने पिता से सहमी सहमी रहने लगी थी। अनु का आत्मविश्वास भी दिन प्रति दिन घटता ही चला जा रहा था और पढ़ाई वो अब अनु के लिये बोझ समान बन चुकी थी। श्रुति ये बात समझती थी की और वो बच्चों पे किसी भी तरह के दबाव के खिलाफ थी लेकिन ये बात पवन को समझाना श्रुति के लिये असंभव था।

देर रात तक जब श्रुति को नींद नहीं आयी तो बच्चों को देखने के लिये वो अनु और अतुल के कमरे में गई अतुल तो गहरी नींद में था लेकिन अनु का बेड खाली था। शायद बाथरूम में होगी ये सोच श्रुति ने बाथरूम में देखा वो भी खाली था। परेशान श्रुति ने सारा घर देख लिया अनु कहीं नहीं थी और घर का दरवाजा भी खुला पड़ा था। एक पल में श्रुति समझ गई भाग के पवन को जगाया,

"पवन जल्दी उठो अनु कहीं नहीं है "|

पवन, श्रुति की आवाज़ सुन अतुल भी उठ कर बैठ गया।

"मम्मा, अनु बहुत रो रही थी कल और कह रही वो पापा के उम्मीदों पे फेल हो गई।"

"देख लिया ना अपने गुस्से का अंजाम? अब मेरी बेटी को ला कर दो पवन , भगवान ना करें अगर अनु को कुछ हो गया तो मैं क्या करुँगी पवन? मैं कहती थी ना बच्चों पे इतना दबाव ठीक नहीं जरुरी नहीं हर बच्चा आलराउंडर ही हो पवन"। रोती हुई श्रुति बस अपनी बेटी वापस पाने की ज़िद पवन से कर रही थी।

चाहे जितना भी कठोर हो था तो पवन भी एक पिता वो भी एक बेटी का अनहोनी आशंका से पवन भी काँप उठा था। बेटी की चिंता में घबराये पवन ने बिना देर किये तुरंत पुलिस स्टेशन ख़बर करने घर से निकल पड़ा। अपनी सारी गलतियां आज पवन के सामने थी।

हमेशा कहता था मैं की मैं कभी अपने बच्चों में फ़र्क नहीं करता लेकिन कितना गलत था मैं फ़र्क तो किया ही था मैंने। अगर अतुल के पढ़ाई में अव्वल आने पे उसकी पीठ ठोकी तो क्यों अनु को पेंटिंग में प्रथम आने पे उसे डांटा और उसकी उपलब्धि को समय की बर्बादी कहा।

पछतावे में जलता पवन जैसे ही कॉलोनी के बाहर निकाला गाड़ी की लाइट सामने के पार्क की बेंच पे बैठी अनु नज़र आ गई। गाड़ी वहीं रोक पवन अनु की ओर भागा रोते रोते अनु वहीं बेंच पे सो गई थी आँसुओ से भरा चेहरा नींद में भी सिसकियाँ उठ रही थी।

एक अपराधी की भांति खड़ा था पवन अपनी बेटी के सामने वो समझ चूका था बच्चों की सलामती ज्यादा जरुरी है ना की उनका आलराउंडर होना। अनु को गोद में ले पवन घर आ गया अपनी बेटी को सही सलामत देख श्रुति के जान में जान आयी।

किसी ने अनु से कोई सवाल नहीं किया। अगले दिन ही अनु का एडमिशन शहर के नामी पेंटिंग इंस्टिट्यूट में पवन ने करवा दिया। श्रुति, पवन में आये बदलाव को देख ख़ुश थी तो वहीं सहमी रहने वाली अनु कुछ ही दिनों में फिर से खिल उठी थी। श्रुति और पवन का घर बच्चों की खिलखिलहाट से गुलजार हो गया था।


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