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समय बदल गया है

समय बदल गया है

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मुन्ना बाबू 56 साल के हो गये थे, उनका सरकारी नाम था श्यामसुंदर। उनकी अर्धांगिनी थीं सुलेखा। सुलेखा गृहणी थीं। श्यामसुंदर रेलवे में बड़े बाबू थे।

वह किस पद पर थे मोहल्ले में शायद ही किसी को ज्ञात हो किन्तु लोग बड़े बाबू से ही संतुष्ट थे। बड़े बाबू शब्दों से वरीयता और सम्मान का बोध होता था। रेलवे से संबन्धित कोई जानकारी लेनी हो तो लोग उनके पास आते थे और संतुष्ट होकर लौटते थे।

पहले सारे मोहल्ले वालों के रेलगाड़ी में आरक्षण का कार्य उनके जिम्मे रहता था। कंप्यूटरीकरण होने से उनका ये सर दर्द दूर हो गया था किन्तु उसी अनुपात में लोगों ने चाय पानी पूछना कम कर दिया था।

उनके दो बेटे थे, एक डॉक्टर दूसरा इंजीनियर। डॉक्टर लंदन में बस गया था और इंजीनियर अमेरिका में।

प्रारम्भ में वे खुश थे। बेटे अच्छे पढ़ लिख गए थे, एन. आर. आई. हो गए थे। पहले जो वस्तु या स्थान बहुत दूर होते थे तो वह लंदन में या लंदन के छोर पे कहे जाते थे। एक बेटे ने उन्हें वह लंदन दिखा दिया था। दूसरे बेटे ने अमेरिका की सैर करा दी थी। उन्होंने दोनों लड़कों के विवाह कर दिये थे, प्रारम्भ में लड़के साल छह महीने में घर आ जाते थे। फिर उनके बच्चे हो गये। जिम्मेवारियाँ बढ़ गयीं और उनका आना कम हो गया। वे अपने परिवार के प्रति जिम्मेवार थे, और शायद उसमें उनके माँ-बाप शामिल नहीं थे।

अब फोन भी उनकी तरफ से कम आता था। मुन्ना और उनकी पत्नी का मन नहीं मानता तो वे लोग स्वयं फोन लगा कर उनके हाल-चाल ले लेते थे।

वे ये भी सोचते,‘ऐसी कैसी व्यस्तता है आजकल ?’

समझ में नहीं आता तो मान लेते थे, ‘समय बदल गया है।‘


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