शबरी
शबरी
शबरी पाठशाला में वार्षिक सांस्कृतिक आयोजन के अंतर्गत कार्यक्रम में, मंच के सामने दर्शक दीर्घा में हजार से अधिक संख्या में विद्यालय के विद्यार्थी, शिक्षक-शिक्षिकाएं एवं बच्चों के पालक अपने अपने आसन पर विराजमान हैं। तब मंच पर से पर्दा उठता है। दर्शकों को मंच पर चार विद्यार्थी दिखाई पड़ते हैं। जिनमें से दो आर्यन एवं काशवी कुर्सी पर बैठे हुए हैं। उनके समक्ष ईशा और जयंत दो बच्चे जिज्ञासु भाव लिए इधर उधर टहल रहे हैं।
तब जयंत सभी को बताता है - मैंने कुछ समय पहले रामायण धारावाहिक शो में शबरी को देखा था वह सफेद बालों वाली सफेद वस्त्र पहने हुए असुंदर रूपहीन वृद्धा थी।
यह सुनने पर ईशा पूछती है - मुझे समझ नहीं आता कि इतने बड़े, भगवान राम ने उसके जूठे बेर कैसे खा लिए थे?
उत्तर काशवी देती है - भगवान राम ने ऐसा करके जगत को संदेश दिया है कि बाल एवं वस्त्र का सफेद रंग पवित्रता का सूचक हैं। इनके कारण कोई किसी से हीन नहीं होता है।
आर्यन आगे बताता है - माता शबरी भील और वृद्धा थी फिर भी चूँकि उसकी बेर जूठे करने की भावना प्रभु हितैषी थी, इसलिए राम ने उसके जूठे बेर खाए थे।
इस पर जयंत पूछता है - मुझे समझ नहीं आ रहा है कि बेर जूठे करके खिलाने में प्रभु हितैषी क्या भावना कैसे थी?
काशवी बताती है - शबरी ने बेरों को चख चख कर वे ही बेर श्रीराम को खाने को दिए थे जो मीठे थे। शबरी माता खट्टे, स्वादहीन बेर उन्हें नहीं खिलाना चाहतीं थीं।
ईशा पूछती है - मगर भील जाति के लोग तो अपढ़ और गंदे होते हैं ना?
आर्यन बताता है - अगर किसी के हृदय में मानवता निवास करती है, अगर कोई व्यक्ति मनुष्य ही नहीं अपितु संपूर्ण प्राणी जाति से स्नेह रखता है, किसी के प्रति वैमनस्यता का भाव नहीं रखता है तो वह व्यक्ति किसी भी जाति का या अपढ़ होने से गंदा नहीं होता है।
तब जयंत फिर पूछता है - प्रभु को शबरी में ऐसा क्या दिख गया था जिससे श्रीरामचंद्र जी ने उससे घृणा नहीं की थी?
काशवी ने उत्तर देते हुए बताया - प्रभु श्री राम जानते थे कि शबरी समस्त प्राणियों की परम हितैषी स्त्री है।
ईशा ने पूछा - वह कैसे?
जयंत बताता है - शबरी जब युवा होकर विवाह योग्य हुई थी तब उसके पिता ने उसका विवाह एक सुंदर भील राजकुमार से तय किया था मगर शबरी विवाह के लिए राजी नहीं हुई थी।
ईशा ने फिर पूछा - वह क्यों?
काशवी ने बताया - विवाह की रस्में अनेकों पशुओं की बलि के साथ संपन्न की जानी थी। शबरी किसी प्राणी की बलि की बुनियाद पर अपना सुखमय जीवन नहीं चाहती थी।
जयंत ने पूछा - क्या वृद्धा होने तक शबरी अविवाहित थी।
आर्यन ने बताया - हाँ, शबरी ने पशुओं की बलि नहीं दिए जाने की शर्त रखी थी। थी। ऐसा नहीं होने पर शबरी ने विवाह नहीं किया था।
जयंत ने पूछा - शबरी जिन प्रथाओं के बीच में पली बड़ी हुई थी उनके प्रति उसे ऐसी अरुचि कैसे हो गई थी?
काशवी ने बताया - शबरी, मतंग ऋषि की शिष्या थी। गुरु मतंग की शिक्षा से शबरी के हृदय में सर्व प्राणीयों के प्रति दया एवं करुणा के भाव रहते थे।
ईशा ने पूछा - क्या गुरु के प्रति ऐसी श्रद्धा एवं आदर के भाव संभव हैं?
आर्यन ने कहा - हाँ बिलकुल संभव है। हमें भी अपने सच्चे गुरुओं के प्रति अगाध श्रद्धा सहित आदर का भाव रखना चाहिए।
जयंत ने पूछा - शबरी ने राम का ऐसा अनूठा सत्कार किया, इससे भगवान से उन्हें क्या मिला था?
आर्यन ने बताया - प्रभु राम प्रसन्न हुए थे। उन्होंने शबरी से कहा, आदरणीय नारी मैं केवल प्रेम के रिश्ते को मानता हूँ। अगर कोई मनुष्य दुराग्रही नहीं है तो वह कौन, किस परिवार एवं किस जाति का है, यह सब मेरे लिए कोई महत्व नहीं रखता है। प्रभु ने शबरी को परमधाम जाने का वरदान दिया था।
काशवी ने आगे बताया - शुभ आग्रह के फल में शबरी नाम सदा के लिए प्रतिष्ठित हुआ था। पंपा सरोवर जहाँ शबरी ने प्रभु जी को बेर खिलाए थे वह हिंदूओं का तीर्थ स्थान है तथा शबरी की साधना स्थली उनके नाम पर आज भी शिवरीनारायण कहलाती है।
ईशा ने तर्क किया - यह सब तो बहुत अच्छा है मगर प्रभु राम शबरी की अहिंसा से प्रभावित हुए फिर भी स्वयं उन्होंने रावण वध करके हिंसा की थी।
आर्यन ने कहा - यह एक पृथक बात है। इसका उत्तर पाने के लिए हमें आगे मंचस्थ किए जाने वाला नाटक देखना होगा।
तब मंच पर पर्दा खिंच जाता है। दर्शक के समक्ष टीचर दुर्गेश आतीं हैं वे कहतीं हैं -
हमारी पाठशाला के छोटे छोटे बच्चों ने पौराणिक कथा के माध्यम से हम सभी को अनुकरणीय संदेश दिए हैं - ‘जो मनुष्य अन्य किसी प्राणी के प्रति दुराग्रही नहीं वह भगवान को प्रिय होता है। हमें भी किसी के प्रति दुराग्रह नहीं रखना चाहिए। व्यक्ति की जाति, रूप या अवस्था की जगह हमें उसके सत्याग्रह एवं गुण को प्रधान करते हुए उसका आदर करना चाहिए ऐसा ही प्रभु राम ने शबरी का आदर किया था। साथ ही जो गुरु सच्चे हैं उनका आदर करते हुए उनकी बताई शिक्षा पर हमें, शिष्या शबरी जैसे चलना चाहिए उससे ही हम प्रभु के प्रेम के पात्र होते हैं। भड़कीला नहीं होते हुए भी श्वेत रंग शांति एवं पवित्रता का द्योतक है उसे धारण करना भी अच्छा होता है।
दर्शक दीर्घा में तब तालियों की गड़गड़ाहट गूँजती है।