Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

गाँव - 1.7

गाँव - 1.7

9 mins
580


मगर भाई का दुर्नोव्का की हवेली में बन्दोबस्त करके, वह इस गीत के पीछे पहले के मुकाबले और भी अधिक शौक से पड़ गया। भाई के हाथों में दुर्नोव्का सौंपने से पहले उसने रोद्का से झगड़ा मोल लिया उन नए चमड़ों के पीछे जिन्हें कुत्ते खा गए थे, और उसे नौकरी से निकाल दिया। जवाब में रोद्का बड़ी ढिठाई से हँसा और चुपचाप झोंपड़ी में अपना सामान समेटने चला गया, दुल्हन ने भी बर्ख़ास्तगी के बारे में ख़ामोशी से ही सुना, उसने, तीखन इल्यिच से अलग होने के बाद, दुबारा मुँह भींचने की, उसकी आँखों में आँखें न डालने की आदत अपना ली थी। मगर, आधे घण्टे बाद, सामान समेटने के बाद, रोद्का उसके साथ बिदा लेने आया। दुल्हन देहलीज़ पर खड़ी थी, निस्तेज, आँसुओं के कारण सूजी पलकें लिए और ख़ामोश; रोद्का ने सिर झुका लिया, टोपी को हाथ में भींच लिया और उसने भी रोने की कोशिश की, विकृत ढंग से मुँह बनाया, और तीखन इल्यिच बैठा-बैठा भौंहे नचाता रहा, हिसाब करने वाले मनके नचाता रहा। उसने सिर्फ एक बात में दया दिखाई – पट्टों का पैसा नहीं गिना।

अब वह दृढ़ था। रोद्का को दूर हटाकर और भाई के हाथों में कारोबार देकर उसे अच्छा लगा, उसकी हिम्मत बढ़ी, “भाई भरोसेमन्द नहीं है, लगता है, खोखला आदमी है, मगर काम चल जाएगा।” और वर्गोल वापस लौटकर, बिना थके पूरे अक्तूबर में वह मेहनत करता रहा। मगर अचानक मौसम बदल गया – तूफ़ान, मूसलाधार बारिश में परिवर्तित हो गया और दुर्नोव्का में एक बिल्कुल अप्रत्याशित घटना हो गई।

अक्तूबर में रोद्का रेलमार्ग पर काम करता रहा, दुल्हन बिना किसी काम के घर में ही रही, केवल कभी-कभी पन्द्रह या बीस कोपेक का काम मिलता हवेली के बगीचे में। वह बड़ी अजीब तरह से बर्ताव करती : घर में ख़ामोश रहती, रोया करती और बगीचे में ख़ूब ख़ुश रहती, खिलखिलाती, दोन्का कोज़ा के साथ गाने गाती जो निहायत बेवकूफ़ और ख़ूबसूरत लड़की थी, इजिप्शियनों जैसी। कोज़ा ठेकेदार के साथ रहती थी, जिसने बगीचे को ठेके पर लिया था, और दुल्हन, न जाने क्यों, उसके साथ दोस्ती करते हुए, आह्वान देती नज़रों से ठेकेदार के भाई की ओर देखा करती, जो एक गुण्डा, बदमाश नौजवान था, उसे देखते हुए गानों में उलाहना देती कि वह किसी के पीछे सूखी जा रही है। क्या उसके साथ उसका ‘कुछ’ था – पता नहीं, मगर यह सब समाप्त हुआ बड़े दर्दनाक तरीके से : कज़ान-माता के त्यौहार के अवसर पर शहर जाते हुए ठेकेदारों ने अपने घास-फूस के तम्बू में छोटी-सी पार्टी का आयोजन किया, कोज़ा और दुल्हन को न्यौता दिया गया, पूरी रात दो एकॉर्डियन बजाते रहे, सहेलियों को शहद का केक खिलाया गया, चाय और वोद्का पिलाते रहे, और पौ फटने पर, जब गाड़ियों को जोत लिया गया, तो अचानक ठहाका मारते हुए, नशे में धुत् दुल्हन को ज़मीन पर गिरा दिया, उसके हाथ बाँध दिए, लहँगे ऊपर उठा दिए, उन्हें सिर के ऊपर इकट्ठा लाकर रस्सी से बाँधकर घुमाने लगे। कोज़ा भाग निकली, डर के मारे गीली लम्बी घास में छिप गई, और जब उसमें से बाहर झाँका, ठेकेदारों की गाड़ियाँ पूरी तरह से बगीचे से बाहर निकल जाने पर, तो देखा कि दुल्हन कमर तक नंगी, पेड़ से लटक रही है। कोहरे से ढँका दयनीय सबेरा था, बगीचे में हल्की बारिश हो रही थी। कोज़ा ज़ार-ज़ार रो रही थी, दाँत किटकिटा रहे थे, दुल्हन के बंधन खोलते-खोलते माँ-बाप की कसम खाकर बोली कि अगर बगीचे की घटना का गाँव में किसी को पता चले, तो उस पर बिजली गिरे।।।मगर एक हफ़्ता भी न बीत पाया था कि दुर्नोव्का में दुल्हन के साथ हुई शर्मनाक घटना की ख़बर फैल गई।

इन अफ़वाहों पर यकीन करना, बेशक, असंभव था, “देखने को तो – किसी ने देखा नहीं, और, हाँ, कोज़ा भी मुफ़्त में बकवास करती रहती है।” मगर अफ़वाहों द्वारा हवा दी गई बातचीत बन्द नहीं हुई, और सब बड़ी बेसब्री से रोद्का के आने का और उसके द्वारा बीबी को दी जाने वाली सज़ा का इंतज़ार कर रहे थे। परेशान होते हुए – दुबारा कोल्हू से निकलकर ! इस सज़ा का इंतज़ार तीखन इल्यिच भी कर रहा था, जिसे बाग में हुए काण्ड का पता अपने मज़दूरों से लगा था : यह काण्ड तो हत्या से भी समाप्त हो सकता था ! मगर वह ख़त्म इस तरह से हुआ, कि अभी तक यह पता नहीं चला कि दुर्नोव्स्का को किस बात से ज़्यादा आघात पहुँचता, हत्या से या ऐसे अन्त से : ‘मिखाइलव-दिवस’ की रात को, घर पर ‘कमीज़’ बदलने के लिए आया हुआ रोद्का, ‘पेट के दर्द’ से मर गया। वर्गोल में इस बात का पता चला देर रात को, मगर तीखन इल्यिच ने फ़ौरन घोड़ा जोतने का हुक्म दिया और अँधेरे में, बरसते पानी में, भाई की ओर निकल पड़ा। उत्तेजना से, चाय के साथ शराब की बोतल पीकर, अत्यन्त भावविह्वल स्वर में, आँखें नचाते हुए, उसके सामने अपना गुनाह कबूल कर बैठा :

“मेरा कुसूर है, भाई, मेरा ही कुसूर है !”

उसकी बात सुनकर कुज़्मा बड़ी देर तक चुप रहा, उँगलियाँ चटख़ाते हुए बड़ी देर तक कमरे में चहलकदमी करता रहा। आख़िर में उसने कहीं का तीर, कहीं का तुक्का लगाते हुए कहा :

“यही तू भी सोच : हमारे लोगों से ज़्यादा वहशी कोई है ? शहर में, दो कोपेक की रोटी चुराकर भागनेवाले चोर के पीछे हलवाइयों की पूरी कतार भागने लगती है, और पकड़ लेने पर उसके मुँह में साबुन ठूँसती है। आग लगने पर, कहीं झगड़ा होने पर पूरा शहर भागता है, और कितना बुरा लगता है उसे कि आग या झगड़ा जल्दी ख़त्म हो गया। मत हिला, मत हिला सिर : दुख ही होता है उसे ! और कितनी ख़ुशी होती है, जब कोई बीबी को मरते दम तक मारता है या बच्चे को बेरहमी से मारता है या उसकी खिल्ली उड़ाता है ? यही तो सबसे ज़्यादा दिलचस्प विषय है।”

“याद रख,” जोश में तीखन इल्यिच ने उसकी बात काटी, “बेशर्म लोग हमेशा और हर कहीं बहुत होते हैं।”

“अच्छा, और तुम ख़ुद नहीं लाए उस, ऊँ क्या नाम है ? उस बेवकूफ़ का ?”

“मोत्या – ‘सिर बत्तख का’ – की बात तो नहीं कर रहे ?” तीखन इल्यिच ने पूछा।

“हाँ, वही, वही, नहीं लाए थे तुम उसे अपने पास दिल बहलाने के लिए ?”

और तीखन इल्यिच हँस पड़ा : लाया था। एक बार तो रेल से मोत्या को उसके पास लाए थे – शकर के डिब्बे में। अफ़सर लोग पहचान के थे, बस, ले आए। और डिब्बे पर लिख दिया : “सावधान ! मरखणा पागल !”

और इन्हीं पागलों को मनोरंजन की ख़ातिर सिखाया जाता है दुराचार !” कड़वाहट से कहता रहा कुज़्मा। “गरीब बेचारी बहुओं के दरवाज़े पर डामर पोत देते हैं ! भिखारियों को कुत्तों से मरवाते हैं ! दिल बहलाव के लिए कबूतरों को पत्थर मारकर छत से उड़ाते हैं ! और इन कबूतरों को खाना, मालूम है, बहुत बड़ा पाप है। ख़ुद पवित्र आत्मा, जानते हो, कबूतर का रूप धारण करती है।”

समोवार कब का ठण्डा हो चुका था, मोमबत्ती पिघल चुकी थी, कमरे में हल्का नीला धुँआ था, पूरा तसला गँधाते, गीले सिगरेट के टुकड़ों से भर गया था। हवादान – खिड़की के ऊपरी कोने में बना टीन का पाइप खुला था, और कभी-कभी उसमें कुछ चीखती-सी आवाज़ आती, कुछ घूमता, कुछ उकताई-सी, कराहती-सी आवाज़ आती – “जैसे स्थानीय दफ़्तर में,” तीखन इल्यिच ने सोचा। मगर इतनी सिगरेटें फूँकी गई थीं, कि दस हवादान भी कुछ नहीं कर सकते थे। और छत पर बारिश शोर मचा रही थी, मगर कुज़्मा घड़ी के पेण्डुलम की तरह इस कोने से उस कोने में जा रहा था और कह रहा था :

”हाँ S S, बहुत अच्छे हैं, कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं ! भलमनसाहत तो इतनी कि बखान ही न किया जा सके ! इतिहास पढ़ो तो सिर के बाल खड़े हो जाएँ : भाई-भाई को, समधी-समधी को, बेटा बाप को।।।विश्वासघात और हत्या, हत्या और विश्वासघात। पुराना लोक साहित्य बड़ी ही मज़ेदार चीज़ है : “सफ़ेद सीना चाक कर दिया”, “पेट को निकालकर ज़मीन पर डाल दिया”, ईल्या, उसने भी अपनी सगी बेटी के “दाहिने पैर पर अपना पाँव रखा और बायाँ पैर उखाड़ दिया”।।।और गाने ? सब एक जैसे, सब एक से : सौतेली माँ - “दुष्ट और कंजूस”, ससुर - “ज़ालिम और गलतियाँ ढूँढ़ने वाला”, “बैठे घर में ऐसे, जंजीर से बंधा कुत्ता जैसे”, सास भी वैसी है ज़ालिम - “बैठी रहे भट्ठी पे जैसे कुतिया बँधी जंज़ीर से,” ननदें – “ख़ुराफ़ाती और झगडालू”, देवर - “दुष्ट, मज़ाक उड़ाने वाले”, दूल्हा – “या तो बेवकूफ़ या शराबी”, ससुर – “बाप उसे हुक्म देता है दुल्हन को खूब मारने का, चमड़ी उधेड़ने का” और दुल्हन ने इसी बाप के लिए “फर्श धोया, उस पानी का सूप बनाया, देहलीज़ खुरची – खुरचन डालकर पकवान बनवाया”, दूल्हे से मगर वह ऐसे बात करती है, “उठ निगोड़े जाग, ये तेरे लिए बर्तन धोया हुआ पानी, हाथ-मुँह धो ले, ये रहा चीथड़ा – पोंछ ले, ये रही रस्सी – गला दबा ले”; और हमारी कहावतें, तीखन इल्यिच ! क्या उनसे बदतर और शर्मनाक कोई और चीज़ सोची जा सकती है ! और मुहावरे ! “एक अधमरे के बदले दो साबुत लो ! ”सादगी बदतर चोरी से”

“मतलब, तुम्हारी राय में गरीबों को अच्छी ज़िंदगी जीनी चाहिए ?” व्यंग्य से तीखन इल्यिच ने पूछा।

और कुज़्मा ने प्रसन्नता से उसके शब्दों को पकड़ लिया :

“हाँ, बिलकुल ! पूरी दुनिया में हमसे ज़्यादा नंगा कोई नहीं है, फिर इस नंगेपन पर कमीनापन दिखाने की भी कोई मिसाल नहीं। किसीको सबसे ज़्यादा चोट कैसे पहँचाई जाए ? गरीबी से ? “भाड़ में जाए ! तेरे पास खाने के लिए कुछ नहीं है।।।” यह रही एक मिसाल : देनिस्का।।।अरे, वही, सेरी का बेटा।।।मोची।।।कुछ दिन पहले मुझसे बोला:

“ठहरो,” तीखन इल्यिच ने टोका, “और ख़ुद सेरी कैसा है ?”

“देनिस्का कहता है – भूख से मर रहा है।”

“कमीना है !” तीखन इल्यिच ने ठस्से से कहा। “और तुम मेरे सामने उसके गीत न गाओ।”

“मैं गा भी नहीं रहा,” कुज़्मा ने चिढ़कर जवाब दिया। “बेहतर है तुम देनिस्का के बारे में सुनो। वही मुझसे कह रहा था कि हम, ट्रेनिंग पाने वाले, काली बस्ती की ओर निकलते और वहाँ ये तवायफ़ें – बहुत बड़ी तादाद में होतीं। और भूखी थी वे बिकाऊ औरतें, बहुत ज़्यादा भूखी ! पूरे काम के लिए उसे आधी डबल रोटी दो, तो वह उसे पूरी की पूरी तेरे नीचे पड़े-पड़े ही खा जाती। कितना हँसते थे हम !”

”ध्यान दो !” कुज़्मा थोड़ा रुककर कठोरता से चीखा : कितना हँसते थे हम !”

“अब रुक भी जा तू। ईसा की ख़ातिर,” फिर से तीखन इल्यिच ने उसे टोका। “मुझे काम के बारे में कम से कम एक लब्ज़ तो कहने दे।”

कुज़्मा रुका।

“अच्छा बोल,” उसने कहा। “मगर कहना क्या है ? अब तुझे क्या करना चाहिए ? कोई चारा ही नहीं है। पैसा देना होगा – बस, बात यहीं ख़त्म। ज़रा सोच: गर्माने के लिए कुछ नहीं, खाने के लिए कुछ नहीं, दफ़नाने को कुछ नहीं ! और फिर उसे काम पर रखना होगा। मेरे पास, खाना पकाने के लिए।”


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama