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Renuka Chugh Middha

Tragedy

5.0  

Renuka Chugh Middha

Tragedy

विदाई

विदाई

2 mins
817


समीरा बहुत ख़ूबसूरत लग रही थी। आज तो क़यामत ढा रही थी। सच में क़यामत तो आई ही थी परिवार पर। अन्तिम विदाई जो थी समीरा की। आज वो समस्त बुराइयों , समाजिक विसगंतियों , रूढ़ियों से मुक्त हो गई जिसमें हर बार मासूम बली चढ़ती है। सबको छोड़ नये सफ़र पर चली थी। चेहरे पर सुकून की मुस्कान थी उसके और बाक़ियों के चेहरे पर मातम फैला हुआ था। समीरा की दोस्त मीरा बहुत फूट -फूट कर रो रही थी, कि उसकी सखी परिवार द्वारा दी गई बाँझ होने की हर यंत्रणा ताउम्र सहन करती रही, जिसमें उसका कोई कसूर नहीं था। आज उसका आख़िर अन्त हो ही गया। उसके ससुराल वाले बहु को ही दोष देते रहे। जबकि वो निर्दोष थी और उनका पुत्र दोषी था।

समीरा के साथ -साथ विदाई हो गई एक आशा की, उम्मीद की जो उसे अपने पति से थी जो सच अच्छे से जानता था कि बाँझ वो नहीं, अपितु नमन ही पिता नहीं बन सकता था। यदि वो उसका हर परिस्थिति में साथ देता तो आज वो ज़िन्दा होती। वो अपनी माँ के सामने भी सत्य स्वीकार कर समीरा को दोष देने से बचा सकता था। लेकिन वो हर बार चुप रहा। वो मूक रह उसे उत्पीड़ित होते देखता रहा लेकिन विरोध करने का साहस नहीं किया। आज वो समीरा को देख फूट फूट रो रहा था और बड़बड़ा रहा कि क्यूँ वो कमज़ोर पड़ गया और उसने बेक़सूर समीरा को अपने परिवार और समाज के तानों से क्यूँ नहीं बचाया। यदि वो साहस से काम लेकर कठोर क़दम उठाता तो आज उसकी समीरा ज़िन्दा होती। वही उसका क़ातिल है। जब समीरा उसके सामने घुटती रही, रोती रही तो उसे बस ये कह कर चुप करवा देता कि “माँ ही तो है कुछ कह भी दिया तो क्या, वो बड़ी है।” आज शायद उसकी माँ को भी उसकी अन्तरात्मा उसे भी कचोट रही होगी कि क्यूँ एक माँ और एक औरत होकर भी वो समीरा के दर्द को अपने झूठे ग़रूर के सामने समझ नहीं पाई। क्यूँ उस बेक़सूर को दिन -रात ताने देती रही। “ ख़ूनी तो मैं हूँ - मैने अपनी बहु को मार डाला “ 

अगर चाहती तो प्यार से इस समस्या का समाधान कर सकती थी लेकिन हाय! मति मारी गई थी मेरी, लेकिन अब पछताने से क्या होगा। आज सब ख़ून के आँसू रो रहे थे समीरा की विदाई पर और वो मनमोहक मुस्कान लिये मानो कह रही थी "जब तक ज़िन्दा थी किसी को फूटी आँख नहीं सुहाती थी आज वही लोग उसके लिये रो रहे है।" लेकिन समीरा चार कन्धों पर सवार हो मुस्कुरा रही थी । 


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